सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

उन्होंने जो इस तरह आपत्ति की है, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हमारी भावनाओंको कितनी ठेस पहुँची है, यह उसका चिह्न है। इतना होनेपर भी यह गुस्सेकी निशानी है। हमें जो दुःख है, उसमें महाराजका दोष नहीं है। इलाज हमारे हाथमें है। दुःख आया है तो इलाज भी होगा। वह इलाज ट्रान्सवालके भारतीयोंके हाथ है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७

२८०. लन्दनमें मुसलमानोंकी सभा

अखबारोंमें तार छपा है कि यह सभा ९ नवम्बरको लन्दनमें हुई। यह कोई मामूली समाचार नहीं है। न्यायमूर्ति अमीरअली सभाके अध्यक्ष थे। कई गोरे उपस्थित थे। नये कानूनसे और कोई लाभ न हो तो न सही, हिन्दू-मुसलमानके बीच मेल तो अवश्य बढ़ेगा, ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। सभामें यह साफ कहा गया है कि हिन्दुओंके लिए भी मुसलमान हक माँगेंगे। जो मुसलमान इकट्ठे हुए थे, वे केवल भारतके ही नहीं थे। भारतके मुसलमान हिन्दुओंके लिए अधिकार माँगें, तो यह उनका कर्तव्य ही है; क्योंकि दोनों भारतकी सन्तान हैं। किन्तु विलायतमें रहनेवाले दूसरे देशोंके मुसलमान भी उसमें शामिल हुए, यह बहुत ही खुशीकी बात है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७

२८१. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसका चन्दा

हर वर्ष हम कांग्रेसका चन्दा इकट्ठा करते हैं। वैसा ही इस वर्ष भी होगा। अब हमारी ओरसे प्रतिनिधि जानेवाले हैं, इसलिए आशा है कि कांग्रेस-निधिके लिए बहुत-से भारतीय हमें चन्दा भेजेंगे। हम उसकी प्राप्ति स्वीकार करेंगे। लगभग २५ पौंड तो जोहानिसबर्ग में जमा हो गये हैं। चन्दा देनेवालोंके नाम अगले सप्ताह प्रकाशित करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७