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२८२. बचे हुए मेमन

प्रिटोरियामें ४०, पीटसबर्ग में २७, पॉचेफ्स्ट्रममें २०, पीट रिटीफमें ३, इस प्रकार लगभग १०० मेमन बच गये हैं। इन्हें हम वीर समझते हैं। उनसे हमारी यह छोटी-सी प्रार्थना है कि अब हिम्मत न हारें और मेमन लोगोंकी तथा भारतीय समाजकी नाक रखें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७

२८३. पण्डितजीका जीवन-चरित्र

इतना शोर मचानेवाले भारतीयका इतिहास जानने के लिए सभी भारतीय उत्सुक होंगे। इस अंकमें हम उनका चित्र दे रहे हैं। रामसुन्दर पण्डितकी आयु तीस वर्षकी है। उनके पिताजीका नाम कालिकाप्रसाद है। वे पुरोहिताई करते थे। पण्डितजीका जन्म बनारसमें हुआ था। बनारस संस्कृत पाठशालामें उन्होंने हिन्दी और संस्कृतका अध्ययन किया था। इधर नौ वर्षोंसे वे दक्षिण आफ्रिकामें पुरोहिताईका काम कर रहे हैं। उन्होंने नेटालमें विवाह किया है और उनकी सन्तानों में ढाई वर्षका एक लड़का और एक वर्षकी एक लड़की है। उनके बाल-बच्चे ग्रेटाउनमें रहते हैं। सन् १९०५ में पण्डितजी ट्रान्सवाल आये। उनके परिश्रमसे जर्मिस्टनमें मन्दिर बना और सनातन धर्म सभाकी स्थापना हुई। एशियाई कानूनके सम्बन्धमें उनके कामको सब भारतीय जानते हैं। अन्तमें हम इतना ही चाहते हैं कि पण्डितजी दीर्घायु हों और निरन्तर समाज-सेवा करते रहें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७

२८४. भारतके लालाजीने क्या किया?

हम मानते हैं कि लाला लाजपतरायने तो देश-निकाला भोगकर सैर की है, क्योंकि उनकी मनोकामना फली है। उन्होंने पंजाबके भूमि-कानूनके विरुद्ध युद्ध मचाया; न कि अपनी सुख-सुविधाके लिए। वह कानून रद हो गया है। फिर लालाजी चाहे मांडलेमें बसें या लाहौरमें, इसकी उनको क्या परवाह हो सकती है? गम्भीरतापूर्वक बोलना बहुतेरोंको आता है। परन्तु उन सबकी बातोंपर लोग ध्यान नहीं देते। लेकिन जो कहा हुआ कर दिखाता है—बोले हुए वचनोंका पालन करता है—उसके वचन पागलके समान हों तो भी सब सुनते हैं। इसी कारण लाला लाजपतरायके भाषणका सारांश हम नीचे दे रहे हैं। इसमें नई बातें नहीं हैं। फिर भी चूँकि वे एक निर्वासित सेवकके विचार हैं इसलिए जानने योग्य हैं।

भाइयो, सरकारका कहना है कि यह (पंजाबकी) जमीन उसने दी है, इसलिए इसपर हमें उसका अधिकार मानना चाहिए। सवाल यह है कि सरकारको जमीन मिली