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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी


श्री कुवाड़ियाने कहा, हमें कोई डर नहीं है। सरकार पण्डितजीको कुछ करेगी, यह नहीं दिखाई देता।

श्री मुहम्मद खाँने कहा, मैं स्वयं स्वयंसेवक हूँ, इसलिए जिन्होंने स्वयंसेवकका काम किया है उनपर मुझे गर्व है।

श्री उमरजीने निम्न लिखित गुजराती दोहा कहा:

"हे माँ, तू तीन प्रकारके लोगोंको ही जन्म देना—दाताको, भक्तको या शूरको। नहीं तो, तू वन्ध्या ही रहना। व्यर्थ ही अपना तेज क्यों खोती है?"[१]

इस सूक्तिके अनुसार, पण्डितजीकी माँने शूर पण्डितजीको जन्म दिया है।

श्री अस्वातने कहा श्री पण्डितके उदाहरणसे सबको समझना चाहिए कि पंजीयन कार्यालय एक जालके समान है। उसमें किसीको फँसना नहीं चाहिए।

श्री काछलियाने पण्डितजीका आभार माना और कहा कि प्रिटोरियामें जितने लोग बचे हैं, वे कभी पंजीकृत नहीं होंगे।

श्री अलीभाईने कहा कि अगर प्रिटोरियामें कानमिया स्वयंसेवक तैयार नहीं होंगे तो वे स्वयं वहाँ खास तौरसे जायेंगे।

श्री व्यासने बताया कि पण्डितजीकी हिम्मत खरी उतरी है। उन्होंने प्रिटोरियामें रहना स्वीकार किया था।

श्री लाल बहादुर सिंहने सब सज्जनोंका आभार माना। श्री पोलकने कामना व्यक्त की कि अब पण्डितजीके बाद मौलवी साहबकी बारी आये।

इसके बाद मौलवी साहबने थोड़ी देर और भाषण देकर सभा समाप्त की।

अन्तमें सबको केले, सन्तरेका नाश्ता और चाय लेमोनेड वगैरह दिया गया।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७

२८६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
बहादुर दर्जी और गोरा व्यापारी

यहाँके दर्जियोंकी मुसीबतका विवरण इस पत्रमें कुछ तो छप चुका है। किन्तु यह किस्सा इतना महत्त्वपूर्ण है कि मैं और भी अधिक विवरण दे रहा हूँ। श्री टी॰ आलब्रेटने दर्जियोंको निम्नानुसार पत्र लिखा है:

उपनिवेश-सचिवके पिछले भाषणसे मालूम होता है कि ट्रान्सवाल सरकारने भारतीयोंके लिए अभी-अभी जो कानून बनाया है उसके सामने यदि भारतीय नहीं झुकेंगे तो ट्रान्सवालकी सरकार परवाना नहीं देगी, कानूनके अनुसार उन्हें गिरफ्तार करेगी और जेल भेजेगी। और आप लोगोंने कानूनके सामने न झुकनेकी प्रतिज्ञा की है, इसलिए मौजूदा प्रसंगसे बचने के लिए हमें आपकी मददकी आवश्यकता है। अतः हमें खेदपूर्वक कहना चाहिए कि आपको हमारी दूकानसे जिस मालकी भी जरूरत पड़े वह आप नकद कीमत देकर लें तथा चालू खातेकी रकम दिसम्बरके पहले चुका दें।

  1. "जननी जणजे त्रणज जन, दाता, भक्त कां शूर । नहिं तर रहेजे बांझणी, रखे गुमावे नूर।"