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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

इससे यह न समझें कि इसमें हमारा उद्देश्य कुछ और है। ईश्वर करे कि आपकी अव्यवस्थित स्थितिका परिणाम विजयपूर्ण निकले और समाधान हो जाये। उस हालतमें, हम चाहते हैं, हमारा जैसा व्यवहार चल रहा था वही फिरसे शुरू हो जाये।

आपने हमें व्यापार तथा लेनेदेनमें जो सन्तोष दिया है उसके लिए हम आभारी हैं।

यह पत्र विनयपूर्ण है। इसमें अपमानका भाव नहीं है। फिर भी इसका अर्थ यही है कि यदि दर्जी पंजीयन न करवायें तो उन्हें माल उधार नहीं मिलेगा। इससे दर्जी चिढ़ गये है। वे डरपोक होते तो डरके मारे पंजीयन करवानेका विचार करते; किन्तु बहादुर हैं, इसलिए उन्होंने आलब्रेटके मालके सारे नमूने उसके यहाँ फेंक दिये और २१ व्यक्तियोंके हस्ताक्षरसे निम्नानुसार पत्र लिखा:

निवेदन है कि आपका गुजरातीमें लिखा हुआ नोटिस हमें मिला। हम अत्यन्त खेदपूर्वक सूचित करते हैं कि आज, अर्थात् तारीख ७ नवम्बर १९०७, से हममें से कोई आपसे किसी भी प्रकारका लेनदेन नहीं करना चाहता। हम आपसे एक पेनीका भी माल नहीं खरीदेंगे। कारण यह है कि हमने पंजीयन न करवाने की शपथ ली है। हम उसे, कितनी ही हानि क्यों न हो, कभी तोड़ना नहीं चाहते। आपका जो भी पैसा निकलता है, वह हम सुविधा होते ही चुका देंगे।

इससे आलब्रेट घबड़ाये। बहिष्कार मजबूतीसे जमा। उनकी दूकानपर यह देखनेके लिए एक धरनेदार बैठाया गया कि यदि उनकी दुकानसे कोई आदमी कपड़ा लेकर सीनेके लिए दे तो वे वह काम लेनेसे भी इनकार कर दें। इसपर श्री आलब्रेटने बहुत अनुनय-विनय की और निम्नानुसार माफी माँगी:

हमने अंग्रेजी तथा गुजरातीमें अपने ग्राहकोंके नाम जो नोटिस भेजा था उसका उन्होंने यह अर्थ किया है कि हमने उन्हें पंजीयन करानेको और, यदि पंजीकृत न हों तो, केवल नकद व्यवहार करनेको कहा है। इस प्रकारका अर्थ करके वे चिढ़ गये हैं और हमारा बहिष्कार कर रहे हैं।

हमें शायद यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि उनकी भावनाको चोट पहुँचानेका हमारा स्वप्नमें भी इरादा नहीं था। हम समझ सकते हैं कि कानूनके सामने झुकनेके लिए उनपर जरा भी दबाव डाला जाये तो उन्हें गुस्सा आ जायेगा। ब्रिटिश राज्यमें सबको अपनी मर्जीके अनुसार चलनेका अधिकार है। इसलिए हम अपना पत्र और अपनी मांग बिना शर्त वापस लेते हैं, और आशा करते हैं कि भारतीय समाजकी जीत होगी और उसे न्याय प्राप्त होगा। हमारी भावना सच्ची है, यह दिखानेके लिए, और हम अपने ग्राहकोंको चाहते हैं, यह साबित करनेके लिए हम लड़ाई में सहायतार्थ २५ पौंडका चेक भेज रहे हैं।

हमें आशा है कि बहिष्कार बन्द हो जायेगा। किन्तु वह तो केवल दर्जियोंकी मर्जीपर निर्भर है। बहिष्कारके समाप्त होनेपर हम पहले के समान व्यापार करके खुश होंगे और उन्हें खुश करनेका प्रयत्न करेंगे। किन्तु हमारे पत्रका इस बातसे सम्बन्ध नहीं है। हमने जो भूल की है उसे सुधारनेके लिए, और हमारा इरादा किसीको चोट पहुँचानेका नहीं था इसलिए यह पत्र लिखा है। हमारा जो पावना है वह, हमें आशा है, समयानुसार चुकाया जायेगा।