२८८. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें
[जोहानिसबर्ग
नवम्बर १७, १९०७]
इसके बाद श्री गांधीने डर्बनसे प्राप्त श्री हाजी हबीबका उत्साह देनेवाला पत्र पढ़ा। बादमें उन्होंने जेलके बारेमें, अखबार बेचनेवालोंकी हड़ताल के बारेमें तथा प्रिटोरियाके धरनेदारोंके मुकदमेवाले लछमनके सम्बन्ध में हकीकत बताई। आगे उन्होंने कहा कि श्री हॉस्केन, जो प्रिटोरियाकी सभामें हमें समझाने के लिए आये थे, आज सरकारको समझानेकी तजवीज कर रहे हैं। नेटालके सेठ पोरन मुहम्मद इस जहाजसे भारत नहीं जा सके। श्री रिच विलायतमें बहुत श्रम कर रहे हैं, उन्हें व्यक्तिगत खर्चके लिए अनुमति देनी चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके लिए श्री फैन्सी चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं, प्रत्येक सज्जनको चाहिए कि उन्हें यथाशक्ति चन्दा दें। पण्डितजीके मुकदमेके बारेमें श्री स्मट्स फिरसे जाँच कर रहे हैं, इससे स्पष्ट होता है कि सरकार कितनी डर गई है।
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७
२८९. पत्र: भारतके वाइसरायको
डर्बन
नवम्बर १८, १९०७
परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदय, [भारत
हम आपकी अनुमतिसे इसके साथ उन प्रस्तावों और तारकी प्रतियां भेज रहे हैं, जो रामसुन्दर पण्डित नामक एक हिन्दू पुरोहितके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कांग्रेस-भवन, पाइन स्ट्रीट, डर्बनमें आयोजित आमसभामें सर्वसम्मतिसे पास और स्वीकृत किये गये हैं। रामसुन्दर पण्डितको ट्रान्सवालके जर्मिस्टन नगरमें नये एशियाई अध्यादेशके अन्तर्गत एक मासकी सादी कैदकी सजा दी गई है।
इस अभियोगका न्याय विरोधी रूप लॉर्ड महोदयके सम्मुख प्रत्यक्ष है और लॉर्ड महोदयकी व्यक्तिगत सहानुभूतिका विश्वास रखते हुए हम सादर निवेदन करते हैं कि भारत सरकार