दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंको, जो तिरस्कृत और अपमानित किये जा रहे हैं, अपना संरक्षण और समर्थन दें। हमें विश्वास है कि हमारे निवेदनपर ध्यान दिया जायेगा।
आपके, आदि,
दादा उस्मान
एम॰ आंगलिया
संयुक्त अवैतनिक मन्त्री,
नेटाल भारतीय कांग्रेस[१]
[संलग्न पत्र]
गुरुवार, १४ नवम्बर, १९०७ के सायं नेटाल भारतीय कांग्रेसके तत्त्वावधान में आयोजित भारतीयोंकी सार्वजनिक-सभामें निम्न प्रस्ताव स्वीकृत किये गये।
नीचेके तारकी प्रति भी पास और स्वीकृत की गई। सभामें तय किया गया कि इसकी प्रतियाँ महामहिम सम्राट्के उपनिवेश मंत्री और ट्रान्सवालके माननीय उपनिवेश सचिवको भेजी जायें।
प्रस्ताव सं॰ १—वफादार ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति ट्रान्सवालका विधान-मण्डल जो अन्याय और कठोरता बरत रहा है उसको सुनकर नेटालकी भारतीय आवादीके प्रतिनिधि भारतीयोंकी इस सभाको गहरा दुःख हुआ है।
प्रस्ताव सं॰ २—यह संघ निश्चय करता है कि रामसुन्दर पण्डित और उनके परिवारको सहानुभूतिके पत्र तथा तार भेजे जायें और अपने समाजकी आध्यात्मिक आवश्यकताओंकी पूर्तिके निमित्त अपने लिए पुरोहितके अधिकार प्राप्त करने के उद्देश्यसे उन्होंने जो रुख अख्तियार किया है उसपर उनको बधाई दी जाये। आगे यह निश्चय किया जाता है कि नेटाल-भरमें एक दिन कारोबार बन्द रखा जाये और इसको कार्यरूप देनेके लिए शनिवार, १६ तारीखको सब भारतीय दूकानें और व्यावसायिक स्थान बन्द रखे जायें, ताकि ट्रान्सवालमें भारतीयोंके ऊपर जो निर्योग्यताएँ लगी हैं वे अधिक व्यावहारिक रूपमें दर्ज हो सकें। यह सभा हिन्दू समाजके साथ, उसके एक आध्यात्मिक नेता और मार्गदर्शकसे वंचित कर दिये जानेपर, हार्दिक सहानुभूति प्रकट करती है और यह सोचकर दुःख अनुभव करती है कि कोई सरकार हिन्दुओंको धार्मिक मार्ग-दर्शकसे वंचित करके उनके धार्मिक कृत्यों और संस्कारोंके उचित सम्पादनमें परोक्ष रूपसे हस्तक्षेप करनेका अविवेक दिखाये। इन प्रस्तावोंकी प्रतियाँ उपनिवेश-मन्त्री, ट्रान्सवाल-सरकार तथा ब्रिटेन और भारतके समाचारपत्रोंको भेजी जायें।
तार : नेटालके भारतीय रामसुन्दर पण्डितकी गिरफ्तारी और सजाका सादर विरोध करते हैं। यह एक ब्रिटिश उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी निजी स्वतन्त्रता और उनके धर्ममें अनुचित हस्तक्षेप है। ब्रिटिश सरकारसे साम्राज्य-हितके लिए हस्तक्षेपकी प्रार्थना है।
इंडिया ऑफिस रेकर्ड्स: जे॰ ऐंड पी॰, ५९८/०८
- ↑ मूलमें हस्ताक्षर संलग्न पत्रके नीचे दिये गये हैं।