२९०. ट्रान्सवालके भारतीयोंको सूचना
जोहानिसबर्ग
बॉक्स ६५२२
नवम्बर १९, १९०७
संघके आँकड़ोंसे[१] सभी भारतीयोंने देखा होगा कि संघ के पास इस समय बहुत कम पैसा है और संघर्ष जबरदस्त है। यद्यपि बहुत-सा काम बिना दामके हो जाता है, फिर भी कुछ तो खर्च होना ही है, और होता है। तार दिये जाते हैं, सैकड़ों पत्र लिखे जाते हैं, बहुत-सा टंकनका काम होता है, कुछ छपाई होती है और अखबारोंमें खर्च होता है। ये सारे खर्च छोटे हैं, फिर भी विचार करें तो कुल मिलाकर काफी खर्च हो जाता है।
बहुत-से शहरोंमें थोड़ा-बहुत चन्दा हुआ है, किन्तु वह रकम संघको नहीं भेजी गई। जिनके पास रकम इकट्ठी हुई हो, उन्हें तथा दूसरे भारतीयोंको भी चाहिए कि जैसे बने वैसे, जल्दी ही रकम संघको भेज दें। यह हमारी प्रार्थना है। हरएकको बदस्तूर पहुँच भेजी जायेगी। हम आशा करते हैं कि इस विषयमें कोई ढील नहीं होगी। यदि पैसा व्यक्तिश: भी भेजा गया, तो स्वीकार किया जायेगा। इतना ही।
ईसप मियाँ, अध्यक्ष
कुवाड़िया, खजांची
मो॰ क॰ गांधी, मन्त्री
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७
२९१. पत्र: मणिलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
नवम्बर २१, १९०७
मेरा खयाल है, मैंने तुम्हें पहले कभी अंग्रेजीमें नहीं लिखा। आज मुझे लाचारीसे गुजरातीके बजाय अंग्रेजीमें लिखना पड़ता है। मैं आज 'रामायण' और संशोधित[२] 'गीता' भेज रहा हूँ। 'रामायण' की जिल्द ठीकसे बँधवा लो। ध्यान रखो कि वह फिर खराब न हो। किताबों और दूसरी चीजोंको[३], जो तुम्हारे पास हों, तुम्हें सावधानीसे काममें लाना सीखना चाहिए। अगली बार वहाँ जानेपर तुम्हारी परीक्षा लेकर संतोष प्राप्त करनेकी आशा रखता हूँ। तुम्हें जेलवाले भजन[४] जबानी याद होने चाहिए। मगनलालको चाहिए कि वे एक भजन-