पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२९४. पण्डितजीकी देश-सेवा

यही माना जायेगा कि रामसुन्दर पण्डितने जेल जाकर जो सेवा की है वैसी सेवा जेलके बाहर रहनेवाले भारतीयोंने, फिर वे कितने ही बड़े क्यों न हों, नहीं की। पण्डितजीने हमारी स्वतन्त्रताका दरवाजा खोल दिया है। उस रास्तेसे हम सब प्रवेश कर सकते हैं। कांग्रेसके अध्यक्षका कहना है कि पण्डितजीने जेल जाकर उसे पवित्र कर दिया है। यह बिलकुल ठीक है। जितने निरपराध लोग जेलमें जाते हैं उसे उतना ही पवित्र करते हैं।

पण्डितजी और उनके कुटुम्बको हम भाग्यशाली समझते हैं। उनका नाम आज सारे दक्षिण आफ्रिकामें गाया जा रहा है और भारतमें भी गाया जायेगा। यह सच्ची सेवाकी तासीर है। पण्डितजीने निडर होकर अपने जीवनका सुख देश-सेवापर न्योछावर किया है। इसे हम सच्ची सेवा मानते हैं।

अब समाज क्या करेगा? इस प्रश्नका उत्तर एक ही है। पण्डितजीको जेल भेजनेके बाद जो भी व्यक्ति खूनी कानूनके सामने झुकेगा उसे हम मनुष्य नहीं कह सकते। हमने जो युद्ध छेड़ा है वह खेल नहीं है। यह कोई दाल-भातका कौर नहीं है। जो विजय प्राप्त करनी है वह मामूली नहीं है। विजयके हिसाबसे हमें कष्ट भी उठाना होगा। सरकारको जबतक विश्वास नहीं हो जाता कि हम दृढ़ हैं, बाहरी दिखावा नहीं कर रहे हैं, तबतक और उतने लोगोंको जेल भोगना पड़ेगा।

निर्वासित करनेकी जो बात सरकार कर रही थी वह झूठ है, यह इस मामलेसे प्रकट हो गया है। डरे हुए भारतीयोंको यह बात अच्छी तरह ध्यानमें रखनी चाहिए।

पण्डितजीके मामलेसे सबसे बड़ा लाभ हमें यह दिखाई देता है कि हिन्दू-मुसलमान दोनों कौमोंके बीच दृढ़ एकता हो गई है। हर व्यक्ति समझ गया है कि यह काम हम सारे भारतीयोंके लिए है। इस लड़ाईका और इस मामलेका यदि इतना ही फायदा माना जाये तो हम उसे काफी समझते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७

२९५. धरनेदारोंका मुकदमा

प्रिटोरियामें गिरफ्तार किये गये स्वयंसेवकोंके मुकदमे में हमें अनपेक्षित विजय मिली है। उन्हें गवाही भी न देनी पड़ेगी, ऐसी आशा किसीको नहीं थी। इसके अलावा उस मुकदमेमें सरकारी गवाहने ही स्वीकार किया कि लछमनपर किसीने हाथ नहीं उठाया था। इस मुकदमेसे सिद्ध होता है कि सरकारका बल बिलकुल क्षीण हो गया है। इसीलिए वह हाथ-पाँव मार रही है। अब उसीके अखबार उसपर हँस रहे हैं।

धरनेदारोंने जो हिम्मत दिखाई है, आशा है, वैसी ही हिम्मत दूसरे भी दिखायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७