पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२९६. कांग्रेसके लिए प्रतिनिधि

ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघने [भारतीय राष्ट्रीय] कांग्रेसमें प्रतिनिधि भेजनेका जो निर्णय किया है, वह उचित है। यहाँके पाँच प्रसिद्ध व्यापारी कांग्रेसमें जाकर पुकार करेंगे, उसका अच्छा प्रभाव पड़े बिना रह ही नहीं सकता। इसके अलावा वह पुकार होगी भी ठीक समयपर—यानी जब ट्रान्सवालमें बहुत से भारतीय जेलका मजा लूट रहे होंगे तब।

प्रतिनिधियोंपर जबरदस्त जिम्मेदारी है। उन्हें सारे भारतमें आवाज उठानी चाहिए। श्री अमीरुद्दीनपर, जो यहाँसे सब कुछ देखकर जा रहे हैं, सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। कांग्रेसका अधिवेशन समाप्त हो जानेके बाद भी उन्हें बहुत काम करना है।

अगले अंकमें हम श्री अमीरुद्दीनका फोटो देनेका विचार कर रहे हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७

२९७. केपके भारतीय कब जागेंगे?

हम बार-बार कह चुके हैं कि केपके भारतीयोंका जागना बहुत जरूरी है। केपमें भारतीय परवानेको रोकनेके लिए कितनी तजवीज की जा रही है, उसका विवरण हमने पिछले अंकमें दिया था। उसके आधारपर हम केपके भारतीयोंसे एक बार फिर पूछते हैं कि आप कब तक सोते रहेंगे? अभी कुछ ही समय पहले हमें कहना पड़ा था कि केपमें प्रवासी कानूनका जुल्म भारतीयोंकी लापरवाही के कारण हो रहा है। उसके बाद वहाँ कुछ हलचल दिखाई पड़ी थी, लेकिन जान पड़ता है, वह फिर बन्द हो गई है। आव्रजनकी बीमारीका इलाज अभी हुआ ही नहीं था कि परवानेकी बीमारी घूर घूरकर देखने लगी है। हमें कहना पड़ता है कि सर्वोच्च न्यायालयमें जानेका हक छिन गया, उसकी जिम्मेदारी भी बहुत कुछ भारतीयोंपर है। उसके बारेमें नेटालकी हालत देखकर केपवालोंको सख्त लड़ाई लड़नी चाहिए थी। किन्तु वह नहीं हुआ, यह अफसोसकी बात है। कानून जब संसदमें था तब उन्हें नींद घेरे रही। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके मनमें यह बात बैठ जानी चाहिए कि इस देशमें आकर नींदमें पड़े रहने से काम नहीं चलेगा। हम हथियार बन्द फौजके बीच पड़े हुए हैं। सभी लोग हमारे विरुद्ध हैं। हम आलस्यमें पड़े रहेंगे और अपने समाजको नहीं सँभालेंगे तो भविष्यमें हमारा और हमारे समाजका बुरा हाल हो सकता है। इसलिए हम केपके भाइयोंसे एक बार फिर कहते हैं कि वे आजसे इस सम्बन्ध में सावधान हो जायें, नहीं तो जो दुश्मन हर रोज आपको सताया करते हैं तथा जो जड़मूलसे उखाड़नेपर तुले हैं वे आपको भी, जैसा ट्रान्सवालमें आज हो रहा है, उस हालतमें न पहुँचा दें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७