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भारतके सेवक

और मैंने उनसे कहा कि उस व्यक्तिको उस अनुमतिपत्रके लिए ३० पौंड देने पड़े हैं। श्री चैमनेने उस व्यक्तिको आफिसमें ले जानेको कहा। बादमें मैंने श्री बरनॉनके पास जाकर कहा कि यदि श्री चैमने के पास खबर पहुँचा दोगे तो पैसे दूंगा। इसमें मेरा उद्देश्य यह बतलाना था कि झूठे अनुमतिपत्र किस प्रकार निकलते हैं। मुझे आशा थी कि उसके लिए इनाम मिलेगा। मैं सम्राट्की एक वफादार प्रजा हूँ, इसलिए मुझे आशा थी कि मझे अपनी बफादारीके लिए सरकारी नौकरी मिलेगी। कोई रकम निश्चित नहीं की गई थी। हैरिसने यह बात की थी कि एक भारतीयने १०० पौंड देनेको कहा है। मैंने अभी कोई निश्चित प्रस्ताव नहीं किया था। इसी बीच मुझे पकड़ लिया गया।

फौजदारी वकीलने लालासे प्रिटोरियासे मिले पत्रके बारेमें प्रश्न पूछे। लालाने कहा कि पत्रका अनुवाद ठीक नहीं है। इसलिए श्री टॉमसनने एक सप्ताहकी और मोहलत मांगी और मुकदमा ४ जून तक के लिए स्थगित किया गया।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७

७. भारतके सेवक

'इंडियन सोशियॉलॉजिस्ट'में एक विद्वान भारतवासीने भारत-सेवकोंका एक मण्डल स्थापित करनेके सम्बन्धमें लेख लिखा है। उसका सार हम नीचे दे रहे हैं:

यह तो अब बहुतेरे भारतीय समझते और चाहते हैं कि भारत सुसंगठित और स्वतन्त्र बने, किन्तु उस भावनाको सफल बनानेके लिए जो नैतिक बल चाहिए वह नहीं है। जो अपने देशकी सेवा करना चाहते हैं उन्हें पहले तो यह समझना चाहिए कि उन्हें अपना जीवन ऐशोआराममें नहीं बिताना है, बल्कि अपने कर्तव्य निभाने में लगाना है। भारतकी आबादी दुनियाका पाँचवाँ भाग है। उसका स्तर उठाना ही भारतके सेवकोंका काम है। ये सेवक भारतीय जनताके न्यासी है। उन्हें धन, मान, शारीरिक सुखोंकी आकांक्षा छोड़ देनी चाहिए, और अपना जीवन भारतको समर्पित करना चाहिए। समस्त भय निकाल देना चाहिए, और इस सेवाको अपने धर्मके अंगके समान मानना चाहिए। ऐसे देशभक्त व्यक्ति बातोंको अपेक्षा कामसे ही अपने निर्मल उत्साहका संचार समस्त जनतामें कर सकेंगे।

ऐसे उज्ज्वल उत्साहकी आवश्यकता तो है ही, साथमें ज्ञानकी भी आवश्यकता है। इसलिए भारत-सेवकोंको भारतका इतिहास जानना चाहिए। भारतके लिए अब क्या जरूरी है, यह समझना चाहिए। अन्य देशोंके इतिहासका भी अध्ययन करना चाहिए।

यह उत्साह और ज्ञान, दोनों ही, कुटुम्ब-जालमें फंसे हुए मनुष्यके पास अधिक समय तक नहीं टिकते। सच्चे सेवकके लिए लंगोटबन्द रहकर ब्रह्मचर्यका पालन करना आवश्यक है। विवाहित होते हुए भी जो लोग देश-सेवक होना चाहते हों वे अपनी पत्नी और बच्चोंको इसी कामके लिए तैयार कर सकते हैं। भारतीय स्त्रियाँ अज्ञान हैं। उनमें स्वदेशाभिमान जगानेको बहुत बड़ी जरूरत है। परन्तु जो लोग विवाहित नहीं हैं, उन्हें यदि उपर्युक्त सेवा