इसके अलावा, श्री मैकिंटायरने 'लीडर' में लिखा है कि यहाँ दस अँगुलियोंकी छाप तो केवल अपराधियोंसे ही ली जाती है। और यदि सरकार दस अँगुलियोंकी छापकी बात छोड़ दे तो उसे हर वर्ष ५०० पौंडका लाभ होगा। इस प्रकार चारों ओरसे मदद मिलने लगी है। स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार हो और दस अँगुलियोंकी बात रद हो जाये, तब तो माँगा हुआ मिल गया, यही माना जायेगा।
प्रिटोरियाके धरनेदारोंका मुकदमा
इस मुकदमेकी टीका करते हुए 'प्रिटोरिया न्यूज़' लिखता है कि:
यदि पण्डितजीके मुकदमेसे सरकारको नुकसान हुआ है, तो फिर धरनेदारोंके मुकदमेसे और भी ज्यादा हुआ है। उस मुकदमेमें साफ कहा गया है कि धरनेदारोंने तनिक भी धमकी नहीं दी, सरकार ही स्वयं लोगोंको डराकर पंजीकृत करती है। इन लक्षणोंको देखते हुए भी यदि कोई भारतीय काला मुँह करता है तो उसे भारतीय माना ही नहीं जा सकता।
हड़ताल
पण्डितजीको जेलकी सजा हो जाने के बाद ट्रान्सवालमें सब जगह दूकानें बन्द रहीं। फेरीवालोंने फेरी नहीं लगाई। अखबार बेचनेवालोंने अखबार बेचना बन्द रखा और नुकसानकी परवाह नहीं की। मालिकोंने अखबार बेचनेवालोंको दूसरे दिन अखबार देने से इनकार किया। ग्राहक नाराज हुए। आखिर अखबारवालोंको ग्राहकोंके नाम विनतीपत्र लिखना पड़ा, और अब भी कठिनाई पूरी तरह हल नहीं हुई। इस तरह जब एक ओर लोगोंका सारा समुदाय कष्ट उठानेको तैयार हुआ तब ऑफर्टनमें श्री कमालखाँ नामक एक व्यापारीने अपनी दूकान खुली रखी। वैसे ही हाइडेलबर्ग में श्री खोटा, श्री अबुमियाँ कमरुद्दीन तथा श्री आदम मामूजी पटेलने अपनी-अपनी दूकानें खुली रखीं। इससे सारा भारतीय समाज बहुत ही क्षुब्ध हुआ है।
गद्दारोंको शाबाशी
श्री खमीसा और उनके भाईबन्दके बारेमें मुझे कड़वी बातें लिखनी पड़ी हैं। इस बार उनकी प्रशंसा करने का अवसर मिला है, इसलिए मुझे खुशी है। श्री खमीसा और दूसरे सब लोगोंने, जिन्होंने अपने हाथ-मुँह काले किये हैं, समाजके लिए दूकानें बन्द की थीं। पीटर्सबर्गम भी सबने वैसा ही किया। इस बातसे प्रकट होता है कि लकड़ी पीटनेसे पानी नहीं फटता। एक देशके आदमी एक-दूसरेके बिलकुल विरोधी बन जायें, यह कभी नहीं हो सकता। स्वार्थ रूपी जहर जब निकल जाता है तब कौमी हमदर्दी हुए बिना नहीं रहती।
चैमनेके चोचले
कुछ लोगोंसे अच्छा काम हो ही नहीं पाता। श्री चैमनेकी इस समय ऐसी ही हालत है। किसी भी बहाने हमें परेशान करके वे भाईसाहब हमसे पंजीयनपत्र लिवाना चाहते हैं। उनका नया चोचला यह है कि अन्धे पोर्तुगीज़ राज्यके साथ उन्होंने व्यवस्था की है कि जिन्होंने पंजीयनपत्र न लिया हो उन्हें परेशान किया जाये। पोर्तुगीज़ वाणिज्यदूतके कार्यालयमें यह नोटिस चिपकाया गया है कि डेलागोआ-बे होकर भारत जानेवाले भारतीयोंको डेलागोआ-बे जानेका पास तभी मिलेगा जब वह नया पंजीयनपत्र बतायेगा। और यदि नया पंजीयनपत्र न दिखाये तो