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भारतीय यह लिख दे कि वह भारतसे ट्रान्सवाल वापस नहीं आना चाहता। यह बात केवल परेशान करने के लिए है। इससे प्रकट होता है कि चाहे जैसा प्रलोभन देकर भारतीयोंसे पंजीयनपत्र लिवाना है और कोई जोर चल नहीं सकता। डेलागोआ-बेका पास न मिले तो भारतीयोंको घबड़ाना नहीं चाहिए। जिसे भारत जाना होगा, वह दूसरे रास्ते जा सकता है। फिर भी इस सम्बन्ध कार्रवाई जारी है।

'ट्रान्सवाल लीडर' की सलाह

'ट्रान्सवाल लीडर' ने सलाह दी है कि सरकार भारतीय समाजके नेताओंसे मिले और उनसे परामर्श करके कानूनकी समस्याका हल निकाले। यदि सरकार वह हल नहीं निकालेगी तो बादमें पछताना होगा। पाठकोंको याद रखना चाहिए कि 'लीडर' ट्रान्सवालका बहुत ही प्रभावशाली अखबार है।

शाहजी साहबकी बहादुरी

पण्डितजी के जेल जाने से शाहजी साहबको बहुत हो दर्द हुआ है। इसलिए उन्होंने अखबारों निम्नानुसार पत्र[१] लिखा है:

महोदय, अपने भारतीय धर्मगुरुके मुकदमेके समय मैं अदालतमें था। उस समय मेरे मनमें यह विचार आया कि ट्रान्सवालके कानून कुछ औंधे हैं। आवेशके कारण मैंने इमाम कमालीको कुरानके फरमानका उल्लंघन करनेके कारण पीटा था। उसमें मुझे जेल अथवा ५ पौंडके जुर्माने की सजा हुई थी। एक निर्दय मित्रने "मैं आपका शिष्य हूँ" कहकर जबरदस्ती ५ पौंड भर दिये। इससे मुझे जेल भोगनेका मौका नहीं मिला। दूसरी बार मैंने श्री मुहम्मद शहाबुद्दीनको मारा था। उसने बयान देते हुए स्वीकार किया कि उसने कुरानकी शपथ तोड़ी थी और इसीलिए मेरा मारना वैसा ही था जैसे बाप लड़केको मारता है। इससे दयालु न्यायालयने मुझे छोड़ दिया, किन्तु चेतावनी दी कि आगे ऐसा हुआ तो सजा होगी।

इस दृष्टिसे रामसुन्दर पण्डितको बेकार ही एक महीनेकी सजा दी गई है। मैं उन्हें पहचानता हूँ। उन्होंने कभी किसीको कष्ट नहीं दिया। वे ब्रिटिश प्रजा हैं और ब्रिटिश उपनिवेशमें अपने सहधर्मियोंके धर्म-सम्बन्धी कामकाज करते हैं। ऐसे व्यक्तिको ट्रान्सवालमें रहनेका एक कागजका टुकड़ा न होनेके कारण जेलमें डाला गया है।

मुझे तो लगता है कि यदि किसीको जेल दी जानी चाहिए तो वह मैं हूँ फिर भी एक आदमीने बीचमे आकर जबरदस्ती पैसे देकर मुझे जेल नहीं भोगने दी। उधर, श्री रामसुन्दर पण्डितको एक महीने के लिए बन्द करके रखा जायेगा, उनके मित्र और सम्बन्धी उनसे नहीं मिल पायेंगे, और वे धर्म-सम्बन्धी कार्य नहीं करा सकेंगे। इससे मेरा हृदय फटता है। मुझे जेल हो और श्री रामसुन्दर पण्डित मुक्त हों तो कितना अच्छा। खुदा, तू उन्हें बिलकुल सुखी रखना और हिम्मत देना।

केप टाउनसे सहानुभूति

केप टाउनके आफ्रिकी भारतीय संघने [ब्रिटिश भारतीय] संघके नाम सहानुभूतिका तार भेजा है। उच्चायुक्तके नाम भी एक तार भेजा है कि उन्हें हस्तक्षेप करके भारतीयोंका कष्ट

  1. मूल अंग्रेजी पत्रके लिए देखिए "पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर'को", पृष्ठ ३७६।