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३०१. प्रार्थनापत्र: उच्चायुक्तको[१]

[जोहानिसबर्ग
नवम्बर २६, १९०७ के पूर्व]

सेवामें
परमश्रेष्ठ उच्चायुक्त, दक्षिण आफ्रिका

निम्नांकित हस्ताक्षरकर्ताओंका प्रार्थनापत्र:

नम्र निवेदन है कि,

१. आपके प्रार्थी पुराने भारतीय सैनिक हैं। हममें ४३ पंजाबी मुसलमान, १३ सिख तथा ५४ पठान हैं।

२. आपके सभी प्रार्थी ब्रिटिश प्रजाजन हैं, और उनमें से अधिकांशको इस उपनिवेशमें गत युद्ध के समय परिवहन-दलोंके रूपमें लाया गया था। प्राथियोंके दक्षिण आफ्रिकामें आनेपर उनके अफसरोंने उनसे कहा था कि युद्ध समाप्त होनेपर आप दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी भागमें बस सकेंगे और आपको इज्जतके साथ रोजगार मिलेगा।

३. आपके प्राथियोंमें से कुछ चित्रालकी चढ़ाईमें[२], तीरा युद्धमें[३] और दूसरी लड़ाइयोंमें ब्रिटिश सरकार की ओरसे लड़े हैं।

४. आपके प्राथियोंमें से अधिकांशके पास शान्ति-रक्षा अध्यादेश और १८८५ के कानून ३के अनुसार जारी किये हुए अनुमतिपत्र तथा पंजीयन प्रमाणपत्र हैं। प्रार्थी ट्रान्सवालके युद्ध-पूर्व कालके बाशिन्दे नहीं हैं, बल्कि उनको ये अनुमतिपत्र उनके अपने-अपने अफसरोंसे मिले हुए विमुक्ति प्रमाणपत्रोंके बदलेमें दिये गये हैं।

५. कुछको छोड़कर इस समय हममें से सभी बेरोजगार हैं। इसकी वजह ज्यादातर एशियाई पंजीयन कानूनके खिलाफ चलनेवाला संघर्ष है। कुछको उनके मालिकोंने पंजीयन न करानेकी वजहसे नौकरीसे अलग कर दिया है, दूसरोंके नौकरीकी अर्जी देनेपर उनसे कहा गया है कि अगर वे नये कानूनके मुताबिक अपना पंजीयन करा लें तो उनको नौकरी दी जा सकती है।

६. आपके प्रार्थियोंकी नम्र रायमें उनके लिए एशियाई कानूनके सामने सिर झुकाना मुमकिन नहीं है; क्योंकि इससे उनको इतना अधिक अपमान सहना पड़ता है, जिसका अनुभव उनको भारतमें पहले कभी नहीं हुआ। और यह उनको ऐसी हालतमें पहुँचा देता है, जो उनके आत्मसम्मान और सैनिक मर्यादाके अनुरूप नहीं है।

७. आपके प्रार्थी किसी भी अधिकारीके सामने, जिसे मुकर्रर किया जाये, यह गवाही देनेको तैयार हैं कि उन्होंने राजभक्त ब्रिटिश प्रजाजनोंके रूप में साम्राज्यकी सेवा की है।

  1. यह प्रार्थनापत्र गांधीजीने ११५ सेवा-निवृत्त भारतीय सैनिकोंकी ओरसे ७ दिसम्बर १९०७ को उच्चायुक्त के नाम लिखे अपने पत्रके (पृष्ठ ४०९) साथ उन्हें भेज दिया था। श्री एल॰ डब्ल्यू॰ रिचने दिसम्बर २३, १९०७ को इसकी एक प्रति उपनिवेश-उपमन्त्री के पास भेजी थी।
  2. १८९५ में।
  3. १८९७-९८ में।