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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


अतः, मेरा अंजुमन इस बातका भरोसा करनेकी हिम्मत करता है कि आप ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों के एक हकमें लीगकी सहानुभूति हासिल करानेकी कृपा करेंगे।

[आपका, आदि,
इमाम अब्दुल कादिर सलीम बावज़ीर
कार्यवाहक अध्यक्ष
हमीदिया इस्लामिया अंजुमन]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-११-१९०७

३०३. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

[मंगलवार, नवम्बर २६,१९०७]

संघका हिसाब

संघका हिसाब[१] सार्वजनिक सूचनाओंके साथ दिया गया है। उसकी ओर ट्रान्सवालके भारतीयोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ। उससे मालूम होगा कि अब संघके पास केवल १४० पौं॰ १८ शिलिंग १ पैंस बचा है। उसमें भी २५ पौंड तो श्री आलब्रेटके दिये हुए हैं। संघने जबरदस्त काम उठाया है, किन्तु उस हिसाबसे पैसा कुछ भी नहीं है। इस संघकी तरह कम खर्चीसे किसी दूसरे संगठनका काम चलता हो, सो हमें नहीं मालूम। उसका चालू खर्च १० पौंडके अन्दर है। किन्तु अब तार आदिका खर्च बढ़ेगा। किराया कुछ लगता नहीं है। कोई फालतू खर्च नहीं है। खर्चका बहुत-कुछ बोझ जोहानिसबर्गपर है। रस्टेनबर्गका अनुकरण दूसरे शहर करें तो भी संघको कुछ मदद मिल सकती है। रस्टेनबर्गसे हालमें ही १५ पौंडकी सहायता प्राप्त हुई है। इससे दूसरे शहरोंको सबक लेना चाहिए।

वह हमें कैसे घेरती है

मैं बता चुका हूँ कि चैमने साहब पूरी व्यवस्था कर चुके हैं कि डेलागोआ-बे जानेमें भारतीयोंको मुसीबतें हों। अब फोक्सरस्टपर मुसीबत आई जान पड़ती है। सुना है कि जो भारतीय नेटाल होकर जाना चाहें, उनके अनुमतिपत्रोंकी जाँच फोक्सरस्ट या चार्ल्सटाऊनमें की जायेगी, उनके अँगूठोंकी छाप ली जायेगी और तब उन्हें आगे बढ़ने दिया जायेगा। इसका उद्देश्य यह है कि संघर्षके समयमें भारत जानेवालोंका नाम दर्ज रहे और जब वे वापस आयें तब उन्हें परेशान किया जाये। इस सम्बन्धमें मुझे सूचित करना है, कि ट्रान्सवाल छोड़ते समय कोई भी अनुमतिपत्र बतलानेके लिए बँधा हुआ नहीं है। किसीको अँगूठेकी निशानी भी नहीं देनी है। इन दोमें से एक भी बात अपराध नहीं है। किन्तु यदि सरकार हैरान करना चाहे तो उसे उसका मौका नहीं देना है। ये सब लड़ाईके बीचके हंगामे हैं। इसलिए किसीको डरना नहीं चाहिए और न हमारे सामने यह सवाल ही उठाना चाहिए कि अब क्या होगा।

  1. देखिए परिशिष्ट ७।