खानवाले क्षेत्रमें परवाने
जोहानिसबर्ग आदि जगहोंपर स्वर्ण-कानूनके अन्तर्गत सरकारने परवाने देने से इनकार किया था और यह स्थिति पैदा हो गई थी कि मुकदमा लड़ना होगा। किन्तु अब फिर सरकारी जवाब आ गया है कि नये कानूनकी लड़ाईके कारण सरकार इस सम्बन्ध में लड़ाई करना नहीं चाहती और जो परवाना मांगेगा उसे दिया जायेगा। यह जवाब समझने योग्य है। ऐसा मुकदमा लड़नेमें सरकारको बदनामीका डर लगता है। क्या ७,००० लोगोंको कैद करते हुए बदनामीका डर नहीं लगेगा?
कोंकणियोंकी सभा
खुद सब दृढ़ हैं, या नहीं यह देखने के लिए पिछले रविवारको कोंकणियोंकी एक सभा हुई थी। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके सभा भवनमें सब एकत्र हुए थे। श्री मालिम मुहम्मद सभाके अध्यक्ष थे। श्री अब्दुल गनीने अपने भाषण में कहा था कि वे स्वयं बिलकुल दृढ़ रहेंगे। जिस शपथको दिलवाने में वे स्वयं शामिल थे, उसे वे तोड़नेवाले नहीं हैं। श्री इस्माइल खाँ, श्री शहाबुद्दीन हसन, श्री हसन मियाँ (रूडीपूर्टके), श्री अब्दुल गफूर आदि सज्जनोंने भाषण दिये और सभामें सबने यही राय व्यक्त की कि चाहे जितनी रुकावटें आयें, फिर भी कानूनके सामने नहीं झुकना है। यह सवाल उठनेपर कि दूकानके हर व्यक्तिको पंजीकृत होना चाहिए या नहीं, यही निर्णय हुआ कि वैसा करनेकी कोई जरूरत नहीं है।
कांग्रेसका चन्दा
[भारतीय] राष्ट्रीय कांग्रेसके चन्देमें यहाँ ५० पौंडसे ज्यादा रकम इकट्ठी हुई है। और भी इकट्ठा होने की सम्भावना है। सूची अगले सप्ताह भेजूंगा। उपर्युक्त रकममें से अभी तो २५ पौंड श्री अमीरुद्दीनको भेजे गये हैं। यदि अधिक रकमकी आवश्यकता मालूम हुई तो ५० पौंड तक भेजनेका निर्णय हुआ है। प्रतिनिधियोंके सम्बन्धमें यहाँसे भारतको जो समुद्री तार भेजे गये हैं, उनका खर्च भी हुआ है। यह हिसाब प्रकाशित किया जायेगा।
डेलागोआ-बेमें भारतीयोंकी सुस्ती
यहाँके अखबारोंसे मालूम होता है कि डेलागोआ-बेके भारतीय यदि नहीं चेतेंगे तो उनका बुरा हाल होगा। वहाँके व्यापार मण्डल (चेम्बर) ने निश्चय किया है कि अब भारतीय सदस्य मत नहीं दे सकते। वहाँके भारतीय यदि यह सब चुपचाप सहते बैठे रहेंगे तो बहुत ही बदनामी होगी। इसके अलावा, वहाँ ट्रान्सवालसे जानेवालोंको तंग करनेकी तजवीज भी की जा रही है। इन सब बातोंको लेकर डेलागोआ-बेके भारतीयोंमें यदि कुछ पानी आ जाये तो अच्छा होगा। वहाँके सेठोंसे सम्बद्ध सभी भारतीयोंको हम जोरोंसे सलाह देते हैं कि उनसे जितना भी लिखा जा सके उतना लिखें।
गायकवाड़को याचिका
महाराजा श्री सयाजीरावको उनकी प्रजाने नये कानूनके बारेमें निम्नानुसार याचिका दी है। उसमें लगभग १५० हस्ताक्षर हुए हैं।[१]
- ↑ देखिए "निवेदनपत्र: गायकवाड़को", पृष्ठ ३८३।