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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

दिसम्बरमें क्या किया जाये?

इस प्रश्नका उत्तर पढ़ने के लिए बहुतेरे पाठक उत्सुक होंगे। मेरी चिट्ठीमें यह प्रश्न अन्तिम रखा गया है, किन्तु इसकी आवश्यकता पहली है। क्या किया जाये, इसका विचार करनेके पहले क्या हो सकेगा, इसपर विचार करें।

क्या हो सकता है

हमने देखा कि सरकारको शरीरसे पकड़ कर निर्वासित करनेकी सत्ता तो नहीं है। फिर जेल भेजना ही बाकी रहा। कानूनके आठवें खण्डके अनुसार हर भारतीयसे पुलिस नया पंजीयनपत्र माँग सकती है। उसके न होनेपर वह उसे मजिस्ट्रेटके सामने ले जायेगी। वहाँ उसे सूचना दी जायेगी कि निश्चित अवधिके अन्दर देश छोड़ दे। उस आदेशका पालन न करनेपर उसे फिर पकड़ा जायेगा और उसे छः महीने तक की जेलकी सजा दी जा सकेगी। इस उपधाराके अनुसार मुकदमा चलने पर अदालतको जुर्माना करनेका अधिकार नहीं है। कानूनको पढ़नेसे मालूम होगा कि अदालत पंजीयनके लिए अर्जी देनेका हुक्म दे सकती है। इस प्रकार मुकदमा न चलाकर सरकार यह मुकदमा भी दायर कर सकती है कि अर्जी क्यों नहीं दी गई। अर्जी न देनेके अपराधकी सजा १०० पौंड जुर्माना या जेल है। ऐसा व्यवहार सरकार प्रत्येक भारतीयके साथ कर सकती है। यानी प्रत्येक भारतीयको जेल भेज सकती है। किन्तु कर सकने और करने में बहुत अन्तर है। सरकार प्रत्येक भारतीयको पकड़े और जेलमें बन्द करे इसे मैं लगभग असम्भव मानकर छोड़ देता हूँ। किन्तु कुछ भारतीयोंको तो जरूर पकड़ेगी।

कुछ गिरफ्तारियाँ जरूर

मेरा अनुमान है कि पहले झपाटमें अधिकसे-अधिक सौके करीब भारतीय पकड़े जायेंगे।

कितना पानी है?

और हममें कितना पानी है यह देखनेके लिए, सम्भव है, गांव-गाँवसे थोड़े भारतीय पकड़े जायें। यदि ऐसा हो तो हमारी लड़ाईका अन्त जल्दी होगा। यदि गाँव-गाँवसे गिरफ्तारी की जाये तो किसीको घबड़ाना नहीं चाहिए। वैसा होगा तो श्री गांधीके लिए प्रत्येक गाँव जाना सम्भव नहीं होगा; और न उसकी जरूरत ही है। जो व्यक्ति गिरफ्तार किया जाये उसके सम्बन्धमें संघ (विआस) को जोहानिसबर्ग तार भेजा जाये।

जमानतकी अर्जी नहीं

गिरफ्तार किये जानेवाले व्यक्तिको जमानतपर नहीं छूटना है। वकील भी नहीं करना है। जिस दिन अदालतमें पेश किया जाये, उसे कहना चाहिए:

मैं कानूनका विरोधी हूँ। मैं ट्रान्सवालका सच्चा निवासी हूँ। मेरे पास सच्चा अनुमतिपत्र है। कानूनसे हमारी मनुष्यता जाती है। उससे हमारा धर्म भी जाता है। इसलिए मैं उसके सामने नहीं झुकूंगा। हमारी सारो कौम उसके खिलाफ है। यदि सरकार मुझे चले जानेका नोटिस देगी तो वह भी माना नहीं जायेगा। इसलिए मुझे जो सजा देनी हो वह अभी ही दीजिए। और यदि नोटिस देना ही हो तो जितने थोड़े समयका दिया जा सके उतने थोड़े समयका दीजिए।

इतना अपने आप या दुभाषियेकी मारफत कहा जाये।