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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

मुहम्मद हुसैन कम्पनी। बहुतेरे गोरोंने उन्हें माल न देनेका डर दिखाकर पंजीयन करवाने के लिए प्रलोभन दिया। लेकिन उन्होंने अपनी एक ही टेक रखी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-११-१९०७

३०८. खूनी कानून तथा उसके अन्तर्गत बनाये गये विनियम

हम इस अंकमें नया कानून तथा उसके अन्तर्गत बनाये गये विनियमोंका अंग्रेजी और गुजराती रूपान्तर दे रहे हैं। हम गुजराती अनुवाद पहले भी दे चुके हैं[१]। इस बारका अनुवाद कुछ विस्तारसे किया है। अब उसके साथ-साथ शान्ति-रक्षा अध्यादेशके खण्ड भी दिये जा रहे हैं। इसके सिवा इस अंकमें दूसरी महत्त्वपूर्ण बातें भी हैं। इसलिए यह अंक प्रत्येक भारतीयको ध्यानसे पढ़ना और सँभालकर रखना चाहिए। हम यह जानते हैं कि नया कानून और उसके विनियम ही कानूनके विरोधमें सर्वश्रेष्ठ दलीलें हैं। इसलिए यह कानून तथा इसके विनियम हम पुस्तक के रूप में गुजराती तथा अंग्रेजीमें भी प्रकाशित कर रहे हैं। उसकी कीमत ६ पेंस रखी गई है। हमें विश्वास है कि भारत में भी यह अंक तथा इस कानूनकी पुस्तिका घर-घरमें पहुँचेगी।

१. १८८५ का कानून ३ निम्न परिवर्तनके साथ कायम रहेगा।

२. एशियाई, यानी कोई भी भारतीय कुली अथवा तुर्कीकी मुसलमान प्रजा। इसमें मलायियों और गिरमिटमें आये हुए चीनियोंका समावेश नहीं होता। (इसके अलावा, पंजीयन अधिकारी आदिकी व्याख्या दी गई है। उसे यहाँ नहीं दे रहे हैं।)

३. ट्रान्सवालमें वैध रूपसे रहनेवाले प्रत्येक एशियाईको पंजीकृत हो जाना चाहिए। इसका कोई शुल्क नहीं लगेगा।

निम्न व्यक्ति ट्रान्सवालमें वैध रूपसे रहनेवाले एशियाई माने जायेंगे।
(क) जिस एशियाईको अनुमतिपत्र कानूनके अन्तर्गत अनुमति मिली हो, बशर्ते कि वह अनुमतिपत्र धोखेसे अथवा गलत ढंगसे प्राप्त किया गया न हो। (मुद्दती अनुमतिपत्रोंका समावेश इसमें नहीं होता।)
(ख) प्रत्येक एशियाई जो १९०२ के मई महीनेकी ३१ वीं तारीखको ट्रान्सवालमें रहा हो।
(ग) जो १९०२ के मई महीनेकी ३१ वीं तारीखके पश्चात् ट्रान्सवालमें जन्मा हो।

४. प्रत्येक एशियाई, जो इस कानूनके अमलमें आनेकी तारीखको ट्रान्सवालमें मौजूद हो, उपनिवेश सचिव द्वारा निश्चित की गई तारीख से पहले निर्धारित स्थानपर निर्धारित अधिकारीके यहाँ पंजीयनके लिए आवेदनपत्र दे। कानूनके अमलमें लाये जाने की तारीख के बाद ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेवाला प्रत्येक एशियाई, यदि उसने इस कानूनके

  1. देखिए, "नया खूनी कानून", पृष्ठ १९-२५ तथा "खूनी कानून", पृष्ठ ७५-८०।