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पत्र: उच्चायुक्त के निजी सचिवको

खूनी विनियम[१]

यह कानून एक पुस्तिकाके आकारमें प्रकाशित हुआ है। कीमत है ६ पेनी; डाकखर्च आधा पेनी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-११-१९०७

३०९. पत्र: उच्चायुक्तके निजी सचिवको

२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक व ऐंडर्सन स्ट्रीट
पो॰ ऑ॰ बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
दिसम्बर ३, १९०७

निजी सचिव

परमश्रेष्ठ उच्चायुक्त

जोहानिसबर्ग
महोदय,

श्री डेविड पोलकने मुझे अभी श्री हॉस्केनका एक सन्देश दिया है जिसमें मुझे सुझाया गया है कि एशियाई कानून संशोधन विधेयकके सम्बन्धमें जो गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई है, उसके विषयमें मैं परमश्रेष्ठसे निजी रूपमें मिलूं और उनके सम्मुख वह बात रखूं, जो मेरी समझसे एशियाई जातियोंको मान्य हो और साथ ही सरकारके मुख्य उद्देश्यको भी पूरा करे।

मैं अब जो कुछ कहने जा रहा हूँ उसकी प्रस्तावनामें यह कहना शायद जरूरी नहीं है कि इस मामले में मुझे जो रुख अपनानेकी आवश्यकता प्रतीत हुई है उसमें मेरी इच्छा जितनी अपने देशवासियोंकी सेवा करनेकी है उतनी ही सरकारकी सेवा करनेकी भी है। मैंने जिन बातोंको इस साम्राज्यकी खूबी समझा है, उनके कारण मैं अपनेको उसका भक्त मानता हूँ। इसीलिए मैंने यह देखकर—चाहे मेरा देखना सही हो या गलत—कि एशियाई कानून संशोधन अधिनियममें साम्राज्यके लिए खतरेके बीज छिपे हुए हैं, अपने देशवासियोंको किसी भी कीमतपर, अत्यन्त शान्तिपूर्ण और, कहूँ तो, शिष्ट ढंगसे इस अधिनियमका विरोध करनेकी सलाह दी है।

सरकारका उद्देश्य ऐसे प्रत्येक भारतीयकी, जो इस उपनिवेशमें रहने और प्रवेश करनेका अधिकारी है, शिनाख्त करना है। मेरी विनम्र सम्मतिम यह उद्देश्य प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियममें संशोधन करके पूरा किया जा सकता है। इस अधिनियमपर अभी सम्राट्की स्वीकृति नहीं मिली है और मेरा विश्वास है कि उसके वर्तमान स्वरूपमें उसे स्वीकृति

  1. इसके बाद खूनी धाराओंका ब्योरा और फॉर्म दिये गये हैं, जिनके लिए देखिए "खूनी कानून", पृष्ठ ७५-८० और परिशिष्ट ४।