नहीं मिलेगी। मेरी विनम्र सम्मतिमें, स्वेच्छया पंजीयनका प्रस्ताव शान्ति-रक्षा अध्यादेशके रद हो जानेकी सम्भावनाको देखते हुए, अधिक उपयोगी न होगा; क्योंकि जो भी पंजीयन प्रमाणपत्र लिये जायेंगे वे शान्ति-रक्षा अध्यादेशके बिना बेकार होंगे। इसलिए मैं निम्न सुझाव देनेका साहस करता हूँ।
(क) सरकारी 'गजट' में इस अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयनके सम्बन्ध में प्रकाशित सूचनाएँ वापस ले ली जायें;
(ख) संसदके अगले अधिवेशनमें प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियममें ऐसा संशोधन कर दिया जाये कि जो भारतीय उपनिवेशमें शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत रहने या प्रवेश करने के अधिकारी हों, या जिनके पास १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत तीन पौंडी पंजीयन प्रमाणपत्र हों और जो उनके सम्बन्धमें अपना अधिकार सिद्ध कर सकें, उनको अधिवास प्रमाणपत्र देने की व्यवस्था हो जाये। अधिवास प्रमाणपत्र पंजीयन प्रमाणपत्रका स्थान लेंगे और उनमें पूरी शिनाख्त—हुलिया—दर्ज होगी। इसमें अधिवासी एशियाइयोंके अवयस्क बच्चोंके प्रमाणपत्रोंका समावेश नहीं होता; किन्तु किसी प्रकारकी जाली कार्रवाई न हो, इसके लिए उनके नाम और आयु अधिवास प्रमाणपत्रों में दे दिये जायेंगे। इससे ज्यादा से ज्यादा जो भी हो लेकिन उपनिवेशमें एशियाई बच्चोंकी संख्या में अवैध वृद्धि कदापि नहीं हो सकती बल्कि सम्भवतः छद्म-परिचय भी बहुत थोड़े-से मामलोंमें होगा और उसके विरुद्ध भी प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम के अन्तर्गत कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। संशोधनमें उन एशियाइयोंके लिए भी, जो शिक्षा सम्बन्धी परीक्षा पास कर सकेंगे, अधिवास प्रमाणपत्र लेनेकी बात शामिल नहीं है। जैसी उपधारा इस समय है उसके अन्तर्गत यह परीक्षा काफी कड़ी है और इसलिए यह अपने आपमें शिनाख्तका पूरा साधन प्रस्तुत कर देती है। संशोधनसे एशियाई अधिनियम भी रद हो जायेगा।
यह देखते हुए कि पंजीयन के बिना पन्द्रह महीने बीत गये हैं, कदाचित तीन या चार महीने और बीतनेसे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। किन्तु यदि सरकारका विचार दूसरा हो, तो दर निवेदन है कि सूचनाएँ वापस लेनेपर भारतीय समाजकी सदाशयताकी परीक्षा करनेके लिए ही सही, वर्तमान कागजोंकी जगह पंजीयन प्रमाणपत्र जारी कर सकती है। ये प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियममें संशोधनके समय अधिवास प्रमाणपत्र मान लिये जा सकते हैं।
मेरी सम्मतिमें, एशियाई अधिनियमको स्वीकृत करनेका मुख्य कारण "बड़े पैमानेपर[१]" चोरीसे प्रवेश करने का आरोप था। चूँकि मैंने एकके बाद एक अनेक अधिकारियोंके अधीन एशियाई विभागके संचालनको सदा निकटसे देखा है, इसलिए मुझे यह बात सदा ही बहुत खटकी है। कप्तान फाउलने जिन प्रमाणोंके आधारपर यह माना था कि बहुत कम भारतीय चोरी-छिपे आते हैं, उन्हीं प्रमाणोंका प्रयोग करके श्री चैमनेने प्रतिकूल प्रतिवेदन दिया। मेरा अब भी विश्वास है कि श्री चैमने जिस पदपर हैं उसके लिये वे सर्वथा अयोग्य हैं, क्योंकि उनमें प्रमाणोंकी सूक्ष्म जाँच करनेकी कानूनी योग्यता बिलकुल नहीं है। मेरे मनमें व्यक्तिशः उनके विरुद्ध कुछ नहीं है। वे शिष्ट और सन्देहसे परे हैं, किन्तु इन दोनों गुणोंसे उस अतिरिक्त योग्यताकी कमी पूरी नहीं होती जो उस पदके लिए, जिसपर वे हैं, अनिवार्य है। इसलिए
- ↑ मूलमें ये शब्द रेखांकित है।