मैं वर्तमान प्रमाणपत्रोंके परिवर्तनके विकल्पके रूपमें यह सुझानेका साहस करता हूँ कि चोरी-छिपे प्रवेशके आरोपकी जाँचके लिए सर्वोच्च न्यायालयके न्यायाधीशको, या विटवॉटर्सरैंड जिलेके मुख्य न्यायाधीशको या किसी दूसरे ऊँचे अधिकारीको, जिसे कानूनी ज्ञान हो, नियुक्त किया जाये। वह ऐसी प्रत्येक बातके सम्बन्धमें, जो एशियाई विभाग के अधिकारी उसके सामने रखें, प्रतिवेदन दे सकेगा; और यदि जाँच जनताके लिए खुली हो और गवाहोंसे खुली पूछताछ की जाये तो उससे ट्रान्सवालके लोगोंकी चिन्ता दूर होगी, जो प्रतिवेदन दिया जायेगा उस पर कोई सन्देह न कर सकेगा एवं उससे कदाचित् इस पत्र में सुझाये गये संशोधनका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।
मैं शिनाख्तके तरीकोंकी जाँच करने और अँगुलियोंके निशानोंके प्रश्नपर जानबूझ कर नहीं विचार कर रहा हूँ, क्योंकि वह एक गौण प्रश्न है। यदि एशियाई अधिनियमको रद करने और भारतीय समाजका सहयोग लेनेका विचार मान लिया जाये तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अन्य कठिनाइयाँ दूर की जा सकती हैं।
यदि आवश्यकता होगी तो मैं कानूनी भाषा में प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके संशोधनोंको प्रस्तुत करनेके लिए तैयार हूँ। मेरी विनम्र सम्मतिमें इनसे एशियाई अधिनियमका उद्देश्य जहाँतक शिनाख्तका सम्बन्ध है, बिलकुल पूरा हो जाता है, और ब्रिटिश भारतीयोंकी भावनाओंको भी किसी तरह ठेस नहीं पहुँचती।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो॰ क॰ गांधी
आर्काइब्ज ऑफ ट्रान्सवाल गवर्नर, प्रिटोरिया: फाइल ५३/११/१९०७।
३१०. मुहम्मद इशाकका मुकदमा[१]
[फोक्सरस्ट
दिसम्बर ६, १९०७]
श्री गांधीने जो अपराधीके वकील थे, सोचा कि कानूनके महकमेके अनिर्णयका उसके मुवक्किलके प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, और विशेषकर उस दशामें, जब वह गिरफ्तार है और जमानतपर छूटने से इनकार करता है। यदि उसके विरुद्ध कोई निश्चित अभियोग नहीं लगाया जा सकता तो उसे तुरन्त रिहा कर दिया जाना चाहिए। सरकारके लिए
- ↑ मुहम्मद इशाक, जो पेशेसे एक बावर्ची था, भारतले लौटनेपर फ़ोक्सरस्ट में गिरफ्तार किया गया। बोअर युद्धसे पहले वह ट्रान्सवालमें चार वर्ष रह चुका था। शान्ति-रक्षा अध्यादेश और १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत उसे एक अनुमतिपत्र और एक पंजीयन प्रमाणपत्र दिया गया था। वह डी'विलियर्स, सहायक अधिवासी मजिस्ट्रेटके समक्ष पेश किया गया और उसने जमानतपर छूटने से इनकार किया। परन्तु सार्वजनिक अभियोक्ता श्री मेंज उस अपराधीके विरुद्ध अभियोग लगाये जानेके बारेमे हिदायतोंकी तब भी प्रतीक्षा कर रहे थे।