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३१२. पत्र: उच्चायुक्तको

[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर ७, १९०७ के पूर्व]

[उच्चायुक्त
प्रिटोरिया
महोदय,]

इस पत्रके साथ में परमश्रेष्ठके विचारार्थ सादर एक प्रार्थनापत्र[१] भेज रहा हूँ। इसपर जमादार नवाबखाँ और फजले इलाहीने उन लोगोंकी ओरसे हस्ताक्षर किये हैं, जिनका ये प्रतिनिधित्व करते हैं। उन लोगों के नाम भी प्रार्थनापत्र से संलग्न सूचीमें दिये गये हैं। यह प्रार्थनापत्र मैं उन पंजाबी, पठान, और सिखोंके अनुरोधपर भेज रहा हूँ, जो ट्रान्सवाल निवासी ब्रिटिश प्रजाजन हैं।

इस प्रार्थनापत्रको भेजते हुए मैं जानता हूँ कि यदि, कदाचित् परमश्रेष्ठने इसमें हस्तक्षेप किया भी तो वह बड़ी कठिनाईसे ही ऐसा करना स्वीकार करेंगे। परन्तु ये प्रार्थी पुराने सैनिक हैं, जो ब्रिटिश सरकारके लिए लड़े हैं और बेशक आज भी उसके लिए और ब्रिटिश झंडेके नीचे लड़नेको तैयार हैं। जहाँतक इनका सम्बन्ध है, मुझे यह स्पष्ट करने की जरूरत नहीं कि इनकी स्थिति कितनी गम्भीर है। मेरी तुच्छ रायसे यह आवश्यक है कि जिन कष्टोंसे वे गुजर रहे हैं उन्हें दूर करनेके कुछ कदम उठाये जायें। उन्हें स्थानीय सरकार द्वारा अथवा साम्राज्य सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त होना चाहिए।

मैंने इनकी अर्जी लिखनेका काम बड़े ही असमंजससे हाथमें लिया था। परन्तु मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जिस साम्राज्यसे मेरा नाता है उसके प्रेमीकी हैसियतसे मेरा यह कर्तव्य है कि उनकी भावनाओंको उपयुक्त अभिव्यक्ति प्रदान करूँ। उनमें से कुछ लोग दक्षिण आफ्रिकामें अपने सम्राट्के सर्वोच्च प्रतिनिधिके समक्ष अपने दुःख व्यक्तिगत रूपसे रखनेको आतुर थे, और अब भी हैं। तथापि मैंने उन्हें समझा दिया है कि ऐसी प्रार्थना स्वीकार होने की कोई सम्भावना नहीं है। इसका कारण न केवल परमश्रेष्ठपर कामका बहुत अधिक भार है, बल्कि शायद प्राथियों द्वारा ऐसी कोई प्रार्थना करनेका अनौचित्य भी है।

[आपका इत्यादि,
मो॰ क॰ गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७
  1. देखिए "प्रार्थनापत्र: उच्चायुक्तको", पृष्ठ ३८४-५।