पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४११
कानून स्वीकार करनेवालोंका क्या होगा?

और युद्धोत्तर कालके कामके बीचका अन्तर देखकर पता चल जाता है कि सरकार किस प्रकार गोलमोल बात करनेवाली है। इसके अलावा श्री रिचके कथनानुसार:

मताधिकार रहित लोगोंकी रक्षा करना ट्रान्सवालका कर्तव्य है। इस बातको छोड़ दें तो भी ट्रान्सवालको चाहिए वह सारे राज्यके हितकी बातोंको पहला स्थान दे। केवल ढाई लाखके लगभग गोरोंके लिए जान-बूझकर तीस करोड़ भारतीय प्रजाके लोगोंपर अपमान और मुसीबतें बरसानसे बड़ी सरकारके राज्य और कीर्तिको कितना बट्टा लगा है यदि इसी बातका गोरे लोग विचार कर लें तो काफी होगा।

श्री रिचकी पुस्तिकासे विलायतमें और अन्यत्र गोरे लोगोंके लिए ट्रान्सवालकी भारतीय समस्याका समझना आसान होगा, और भारतीय समाजके लिए वह बहुत ही लाभदायक है।

इस प्रकार जबरदस्त टक्कर ली जा रही है और जान पड़ता है कि समझौतेकी चर्चा भी शुरू हुई है। इसलिए यह कहनेकी अब शायद ही आवश्यकता है कि सभी भारतीय दृढ़ रहेंगे और सरकार द्वारा जो भी जाल बिछाया जाये उससे सतर्क रहकर बेधड़क जेल जानेके लिए तैयार रहेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७

३१४. कानून स्वीकार करनेवालोंका क्या होगा?

इस प्रश्नका उत्तर हम तो अनेक बार दे चुके हैं। किन्तु अब श्री हिलने दिया है। श्री हिल एशियाई विरोधी मण्डलके एक नेता हैं। उनके लिखे हुए पत्रका सारांश[१] हमने दिया है। वह सबके पढ़ने योग्य है। श्री हिल कहते हैं कि नया कानून तो एशियाइयोंको निकाल बाहर करनेका आरम्भ-मात्र है। कानून तो और भी बनाने ही हैं। इसलिए नये कानूनके विरुद्ध भारतीयोंने जो लड़ाई शुरू की है उसका सरकारको सीधा उत्तर देना है। अर्थात् इस कानूनको पूरी तरहसे अमलमें लाकर एशियाइयोंको पछाड़ा जाये। उन्हें पछाड़ने के बाद गोरे जो भी करना चाहेंगे कर सकेंगे। ऐसे पत्रके बाद भी क्या कोई मान सकता है कि नये कानून के सामने झुकनेवाला ट्रान्सवालमें सुखसे रह सकेगा?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७
  1. यहाँ प्रकाशित नहीं किया गया है।