पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३१५. रामसुन्दर पण्डित

हमारे पास ऐसे पत्र आये हैं जिनमें पण्डितजीके सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे गये हैं। उन पत्रोंको हम प्रकाशित करना नहीं चाहते। क्योंकि उनमें लेखकोंने बड़ी गलतफहमीसे काम लिया है। पत्रोंमें एक प्रश्न ऐसा उठा है, जिसका हम यहाँ खुलासा करेंगे। किसीने पूछा है कि पण्डितजी मीयादी अनुमतिपत्रकी मीयाद पूरी हो जानेपर भी यहीं रहे और जेल गये, इससे समाजका क्या फायदा? इस प्रश्नके पूछे जाने में बड़ी भूल हुई है। सभी मीयादी अनुमतिपत्रवाले पण्डितजीके समान लड़ नहीं सकते थे। मीयाद बीत जानेपर वे ट्रान्सवाल छोड़नेके लिए बंधे हुए थे। किन्तु धर्मगुरुका काम करनेवाले मोहलत न मिलनेपर भी रह सकते थे। इसलिए, और समाजकी माँग थी इसलिए, वे यहाँ रहे। उनके लिए जर्मिस्टनकी जमातने पत्र भी लिखा था। और उनपर जो मुकदमा चलाया गया वह नये कानूनकी १७वीं धाराके आधारपर। हमारा खास मत है कि उनके मुकदमेसे कौमको बहुत ही लाभ पहुँचा है। उनके जेल जानेसे सबको जोश आ गया है। यह समय ऐसा है कि कानूनकी लड़ाईमें जो भी भारतीय जेल जायेगा उससे फायदा ही होगा। क्योंकि यह पहला अनुभव है। किन्तु पण्डितजी जैसे व्यक्ति जेल जायें, उसका असर और ही होगा, और हुआ है। इस असरके कारण ही शाहजी साहब आदि उनके पीछे जेल जानेको छटपटा रहे हैं; इसीलिए जर्मिस्टनमें सैकड़ों भारतीयोंकी सभा भी हुई जिसमें पण्डितजीकी बहादुरीकी तारीफ की गई। कहना सबको आता है किन्तु करना तो अबतक पण्डितजीको ही आया है। इतना काफी है कि उन्होंने कौमके हित में अपना स्वार्थ त्याग किया और बाहर निकलने के बाद और भी ज्यादा करनेको तैयार हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७

३१६. नेटालमें युद्ध-स्वयंसेवक

जूलूलैंडमें फिर काफिरोंकी बगावत शुरू हो गई है। इसलिए गोरी सेनाके हजारों आदमियोंको भेजा गया है। ऐसे समयमें भारतीय समाजको आगे आना चाहिए। आगे बढ़नेमें अधिकार प्राप्त करनेपर नजर नहीं रखनी चाहिए। उसमें हमें केवल इस बातका विचार रखना चाहिए कि समाजका कर्तव्य क्या है। हक तो बादमें अपने-आप आते हैं। यह सामान्य नियम जान पड़ता है। भारतीय समाज इस बार फिर पिछले वर्षके समान प्रस्ताव[१] करेगा तो ठीक ही होगा। इस समय जो लोग युद्ध-स्वयंसेवक नहीं बने हैं उनसे अमुक कर लेने की प्रवृत्ति चल रही है। इस करका बोझ केवल भारतीयोंपर ही पड़ेगा। और उतना कर देने के बाद भी भारतीय समाजकी भलमनसाहत नहीं मानी जायेगी। इससे हमें निश्चय हो

  1. देखिए खण्ड ५, १४ ३०२ और ३०३।