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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

गया है कि भारतीय समाजको फिरसे सहायताका प्रस्ताव करना चाहिए। हम मान लेते हैं कि इस समय वैसा करनेके लिए बहुत-से भारतीयोंमें उत्साह होगा। जो लोग पिछले वर्ष लड़ाईमें गये थे वे फिरसे जा सकते हैं। वे बहुत कुछ प्रशिक्षित हो चुके हैं और उन्हें कामकी जानकारी है। हमें आशा है कि यह काम तुरन्त ही हाथमें ले लिया जायेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७

३१७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
विराट सार्वजनिक सभा

भारतीयोंकी आम सभाओंका पार नहीं है। और वे सभाएँ एकके बाद एक ज्यादा बड़ी होती जा रही हैं। प्रिटोरिया में जो पिछली सभा हुई थी वह उसके पहलेकी सभासे ज्यादा बड़ी थी। रविवारको जो सभा[१] जोहानिसबर्गमें हुई उसने प्रिटोरियाकी सभाको भी मात कर दिया—लोगों में इतना जोश था, भीड़ इतनी अधिक थी। अब सभाएँ अपने-आप होती हैं और सभीको उनकी हौंस रहती है। किसी भी तरह देशकी सेवाकी जाये, यह उत्साह लोगोंमें दिखाई दे रहा है।

दो हजारसे ज्यादा

इस सभा २,००० से ज्यादा लोग उपस्थित थे। बहुत-से गांवोंसे प्रतिनिधि आये थे। प्रिटोरिया से करीब चालीस थे। पॉचेफ्स्ट्रमसे लगभग सोलह थे। इसी तरह सब जगहोंसे प्रतिनिधि आये थे।

सूरती मसजिदके प्रांगण में

सभा सूरती मसजिदके प्रांगण में हुई थी। मसजिदके चबूतरेपर, चाँदनीपर, छप्परपर लोग बैठे हुए थे। पहला विचार श्री ईसप मियाँके नये मकानमें सभा करनेका था। किन्तु सभाके समयसे पहले ही इतने ज्यादा लोग आ गये कि उस घरमें समा नहीं सके। इसलिए तुरन्त खुलेमें सभा करनेका विचार किया गया।

ईसप मियाँ

अध्यक्षका आसन श्री ईसप मियाँने ग्रहण किया था, यद्यपि उस समयकी परिस्थितिमें वे और जोहानिसबर्गके बहुत से लोग पूरे समय खड़े ही रहे थे। आये हुए प्रतिनिधियोंका श्री ईसप मियाँने स्वागत किया और धरनेदारोंका उनके कामके लिए आभार माना।

अन्य भाषणोंका सारांश

दिसम्बर महीने में क्या हो सकता है, इसका श्री गांधीने खुलासा किया और गोरोंकी बढ़ती हुई सहानुभूतिके सम्बन्ध में वस्तुस्थितिका वर्णन किया। भारतीयोंके लिए यह समय स्वतन्त्र होनेका है; इसलिए कोई भी व्यक्ति नेताकी ओर न देखे, बल्कि सभी अपने-आपको नेता समझें और जेल वगैरहका जो भी कष्ट आये उसे निर्भयतापूर्वक सहन करें।

  1. सभा जोहानिसबर्गके समीप फोईसबर्ग में हुई थी।