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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

नवम्बर महीनेके गद्दार

नवम्बर महीनेमें धरना देनेवालोंने प्रिटोरियामें जोहानिसबर्गके समान ही काम किया। उनकी सावधानीसे बहुत ही कम भारतीय पंजीकृत हुए थे। और प्रिटोरियासे तो एक भी नहीं हुआ, ऐसा माना जा सकता है। किन्तु उपनिवेशसे कुछ-कुछ लोग आ गये। इसमें हाइडेलबर्गने पहल की है। यह काम श्री रतिलालने किया जो पढ़े-लिखोंकी गिनतीमें आते हैं। उनके बाद श्री अब्रू मियाँ कमरुद्दीन के कुछ लोग गये और आखिरमें श्री खोटाके लोग। श्री खोटाके लोगोंके जानेसे सबको अफसोस हुआ। और उनका जाना सूरती समाजने कलंक माना है। श्री रतिलालके जानेसे गुजराती हिन्दुओंमें खलबली मची है। गुजराती हिन्दू बिलकुल साफ बचे मालूम होते थे। लोग मानते थे कि श्री लक्ष्मीचन्दके सिवा कोई नहीं जायेगा। किन्तु रतिलालने उनके इस विश्वासको भंग कर दिया है। अपने नौकरोंके सम्बन्धमें श्री खोटाने लिखा है कि नौकरोंका दोष नहीं है। उन्होंने स्वयं दवाव डाला था इसलिए नौकरोंको जाना पड़ा। नौकरोंने साफ इनकार किया था किन्तु श्री खोटाके आग्रहसे वे गये। अब श्री खोटाको अफसोस है और वे लज्जित हैं। इसके अलावा, उन्होंने लिखा है कि उनकी चार दूकानें हैं इसलिए उनके मनमें बहुत भय पैदा हो गया था। किन्तु अब वे नहीं जायेंगे। इतना ही नहीं, जेल जाने तक लड़ते भी रहेंगे। श्री खोटाने अपने आचरणके बचावमें कुछ नहीं कहा इसलिए अब टीका करने जैसी स्थिति नहीं रहती। किन्तु उनके भयके लिए सबको खेद अवश्य होगा। उन्होंने पूरी हिम्मत रखी होती तो बहुत ही शोभनीय होता। मुझे आशा है कि श्री खोटाके उदाहरणका कोई अनुकरण नहीं करेगा।

अन्य गद्दारोंमें गरीब मद्रासी और कलकतिया लोगोंका समावेश हो जाता है। उनका कोई प्रभाव नहीं है। क्योंकि वे एकदम अजनबी हैं और गुलामों-जैसी स्थितिमें रह रहे हैं। इसलिए नवम्बर महीनेमें पंजीयन जारी रखनेके लिए कुछ नेताओंकी माँगकी जो बात निकली थी, वह भी गलत साबित हुई है।

'संडे टाइम्स'

'संडे टाइम्स' में यह टीका है कि यदि पहलेके अनुमतिपत्र अधिकारी रिश्वतखोर नहीं होते तो सरकारको नया कानून बनाना नहीं पड़ता। अर्थात्, इससे यह सिद्ध होता है कि सरकार अपने अधिकारियोंके अपराध के लिए भारतीय समाजको सजा दे रही है।

दूसरे अखबार

दूसरे अखबारोंमें जो लेख आते हैं उनसे हँसी आती है। सभी अखबार साफ लिख रहे हैं कि यह नहीं दिखाई देता कि सरकार किसीको जेलमें बन्द करेगी। 'स्टार' तो साफ कहता है कि जेलमें बन्द करनेकी जरूरत नहीं है। सिर्फ परवाने रोककर लोगोंको तंग करके धीरे-धीरे पंजीयनपत्र लेनेपर मजबूर कर देंगे। 'स्टार' साफ कहता है कि मजिस्ट्रेटके सामने किसी भारतीयको खड़ा किया जायेगा तो वहाँ भी जेलकी सजा देनेके बजाय मजिस्ट्रेट उसे पंजीयन कराने के लिए समय देगा। 'स्टार' का लेख सरकार-प्रेरित जान पड़ता है इसलिए सभी भारतीय ठीक तरह सावधान रहें।

सावधान रहो

मजिस्ट्रेट के सामने खड़े होनेवाले भारतीय यदि डर जायेंगे तो ठीक नहीं होगा। वैसे भारतीयको देश-निकालेका नोटिस देनेकी अपेक्षा मजिस्ट्रेट पंजीयनकी अर्जी देनेके लिए