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भारतीयोंका मुकदमा

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मैंने पिछले सप्ताह जब पत्र लिखा तब कांग्रेसके प्रतिनिधियोंके लिए केवल २५ पौंड भेजनेकी बात थी। किन्तु बादमें ३५ पौंड भेजनेका फैसला हुआ था, इसलिए ३५ पौंडकी हुंडी श्री अमीरुद्दीनको भेज दी गई है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१२-१९०७

३१८. भारतीयोंका मुकदमा[१]

[फोक्सरस्ट]
दिसम्बर ९, १९०७

जिरहमें गवाहने स्वीकार किया कि एशियाइयों द्वारा पेश किये गये अनुमतिपत्र अबतक के निर्देशके अनुसार उन्हें प्रवेश और पुनः प्रवेशका अधिकार देनेके लिए पर्याप्त माने गये हैं। उसे नहीं मालूम था कि पुनः प्रवेश अनुमतिपत्रके अनुसार था या शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अनुसार। उसने एशियाइयों को पुनः प्रवेश करने दिया। क्योंकि उसे ऐसा ही निर्देश मिला था।

[गांधीजी:] आपको अब क्या निर्देश दिये गये हैं?

[गवाह:] मुझे ये निर्देश दिये गये हैं कि १६ वर्षसे अधिक आयुके सब एशियाई पुरुषोंको, जो एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्र या ऐसे अस्थायी अधिकारपत्र पेश न कर सकें जिनसे उनको पुनः प्रवेशकी अनुमति प्राप्त होती हो, रोक लिया जाये और गिरफ्तार कर लिया जाये

क्या ये निर्देश ऐसे एशियाइयोंपर भी लागू होते हैं जिनके बारेमें आप जानते हों कि वे पुराने अधिवासी हैं, जिन्होंने अनुमतिपत्र दिखाये होंगे और हाल ही में उपनिवेश छोड़ा होगा?

हाँ, क्योंकि इन निर्देशोंके अनुसार मेरा कर्तव्य यही है। यदि एशियाई नये अधिनियमके अन्तर्गत अधिकारपत्र प्रस्तुत नहीं कर सकते तो मुझे उन सबको किसी भेदभावके बिना गिरफ्तार करना है।

  1. फोक्सरस्ट में आनेपर ६ दिसम्बरको २० भारतीय और उससे अगले दो दिनोंमें अन्य १७ भारतीय गिरफ्तार किये गये थे। उनपर सहायक आवासी न्यायाधीश श्री डी'विलियर्सके न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। पहले २० भारतीयोंका मुकदमा लिया गया। सरकारी वकील श्री मेजकी जिरहमें सार्जेंट मैन्सफील्डने बताया कि सब अभियुक्तों के पास अनुमतिपत्र और शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत पंजीयन-प्रमाणपत्र थे, उनके अंगूठेके निशान विधिवत् हैं और उनको अनुमतिपत्रों के अनुसार उपनिवेशमें प्रवेशका अधिकार है; किन्तु पुनः प्रवेशका अधिकार नहीं है। अभियुक्तोंने उसे कहा था कि वे एशियाई अधिनियनको मानना नहीं चाहते। गांधीजीने उससे जिरह की।