न्यायालय इसे अवैध करार देगा। सही मार्ग यह है कि इस कानूनकी परवाह न करके इसका विरोध किया जाये। जहाँ सामूहिक रूपसे परवाने न दिये जायें वहां मालके बिकनेकी परवाह न करके बिना परवाने के व्यापार किया जाये। ऐसे कष्टोंके लिए अनाक्रामक प्रतिरोध सर्वोत्तम उपाय है।
इंडियन ओपिनियन, १४-१२-१९०७
३२३. स्वर्गीय नवाब मोहसीन-उल-मुल्क
नवाब मोहसीन-उल-मुल्कके जन्नतनशीन होनेकी खबर हम पहले दे चुके हैं।[१] इस अंकमें उनका संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त दे रहे हैं। उन्होंने शिक्षाके क्षेत्रमें जो सेवा की है वह प्रत्येक भारतीयके लिए, और विशेषतः प्रत्येक मुसलमानके लिए, अनुकरण करने योग्य है। उन्होंने शिक्षाको राजनीतिके मुकाबले पहला स्थान दिया। यह दृष्टिकोण बहुत हद तक, और विशेषकर उनके समय में यथार्थ ही था। जहाँ शिक्षा सदाचरण तथा नैतिक जीवनकी सीखके साथ-साथ मिलती है वहाँका समाज बहुत लाभ उठा सकता है। लेकिन, उच्च आचरण तथा उच्च नैतिकताके अभाव में शिक्षा भयंकर है। वह वैसी ही है जैसी बिना बाड़की बेल जो ऊपर नहीं चढ़ सकती। ऐसी नैतिकतापूर्ण शिक्षा लेना सभीका कर्तव्य है, और यह हम स्वर्गीय नवाबके जीवनसे सीख सकते हैं।
इंडियन ओपिनियन, १४-१२-१९०७
३२४. जर्मन पूर्व आफ्रिका लाइन
आजकल जब कि भारतीयोंमें मान-मर्यादाकी हवा वह रही है तब श्री पीरन मुहम्मदपर जो बात गुजरी है वह जानने जैसी है। उन्होंने उपर्युक्त कम्पनीके यूरोपकी ओर जानेवाले जहाजका पहले दर्जेका टिकट माँगा था, सो उन्हें नहीं मिला। इसे हम बहुत अपमानजनक मानते हैं। यह बात जर्मन कम्पनीको शोभा देनेवाली नहीं है। उसे भारतीय यात्रियोंसे बहुत बड़ी कमाई होती है। किन्तु इसका खयाल न करके, भारतीय यात्री पहले दर्जेका टिकट माँगते हैं तो उन्हें देने से इनकार किया जाता है। यह हमारे लिए लज्जाजनक है। वह कम्पनी हमारी जीवन-विधिसे परिचित है। हम ऐसे लोग नहीं जो कुछ कर सकें, इसलिए वह हमारा अपमान करती है। गोरे यात्रियों के साथ ऐसा बरताव करनेकी उसकी हिम्मत नहीं होती। इसके तीन उपाय हैं। ये तीन उपाय एक साथ किये जाने चाहिए:
(१) कम्पनीको सख्त पत्र लिखा जाये।
(२) उसके एजेंट श्री उस्मान अहमद कम्पनीको सूचना दें कि ऐसा करने से कम्पनीको नुकसान पहुँचेगा।
(३) और यात्रियोंको उसमें यात्रा करने से रोका जाये।
- ↑ यहाँ नहीं दिये गये हैं।