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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

कानून क्या है, जबतक कि समय नहीं आया, वैसा ही हाल हमारा है। स्वेच्छया पंजीयन और कानूनके अनुसार पंजीयनमें मुख्य अन्तर यह है कि कानून गुलाम बनाता है और स्वेच्छया पंजीयन मनुष्य बनाता है। सरकारके दबावके कारण पंजीकृत होना गधेकी सवारी है, जब कि स्वेच्छ्या पंजीयन हाथीकी सवारी है। स्वेच्छया पंजीयनमें भले ही अनिवार्य पंजीयनके जितनी ही बातें लिखनी पड़ें, फिर भी उसे स्वीकार किया जा सकता है। परन्तु अनिवार्य पंजीयनकी गुलामी सम्बन्धी कोई खास बात छोड़ देनेसे गुलामी समाप्त नहीं होती। कानून बहुत कड़ा है। इसीलिए स्थानीय सरकार उससे जोंकके समान चिपटी हुई है। और इसीलिए हम पन्द्रह महीने हो गये उसे चिपटने नहीं दे रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हम गोरोंके साथ एक धरातलपर रहना चाहते हैं और गोरे हमें नीचे उतारना चाहते हैं। कानूनको स्वीकार करनेसे शपथ टूटती है और हमेशाके लिए काला टीका लगता है। कोई पूछ सकता है कि स्वेच्छापूर्वक भी हम अपने पंजीयनपत्र क्यों बदलायें? इसका उत्तर बहुत ही सरल और सीधा है:

(१) जिस प्रकार कानूनका विरोध करनेकी हमने शपथ ली है, उसी प्रकार दस्तावेजको स्वेच्छापूर्वक बदलवानेकी बात भी हम कहते आये हैं। अतः यदि अब हम वैसा नहीं करते तो हमारी टेक जाती है, और हम झूठे ठहरते हैं।
(२) भारतीय समाजपर यह आरोप है कि उसके बहुत से लोग झूठे अनुमतिपत्रोंके द्वारा अथवा बिना अनुमतिपत्रों के प्रविष्ट हुए हैं। यह आरोप गलत है। इसे हम स्वेच्छया पंजीयनके द्वारा सिद्ध कर सकते हैं, और वैसा सिद्ध करना कर्तव्य है। और चूँकि हम सिद्ध करनेको तैयार हैं, इसीलिए दुनियाकी सहानुभूति अपनी और खींच सके हैं।
(३) स्वेच्छया पंजीयनसे इनकार करनेका मतलब यह स्वीकार करना है कि हम झूठे हैं।
(४) हमने जितनी प्रतिष्ठा प्राप्त की है स्वेच्छया पंजीयनसे हम उससे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। हमें यह नियम याद रखना चाहिए कि जब लोग अपने-आप कोई काम नहीं करते, अर्थात् कमजोरी बताते हैं, तभी कानून बीचमें आकर वह काम करनेके लिए मजबूर करता है। बहुतेरे काफिर अपने आप शराब पीनेसे नहीं रुकते, इसलिए जहाँ रोकना जरूरी जान पड़ता है वहाँ कानून बीचमें आकर विवश करके रोकता है। जो आदमी कर्तव्य समझकर नहीं, बल्कि कानूनके बन्धनके कारण ही शराब नहीं पीता वह गुणी नहीं कहा जाता, जो अपने-आप नहीं पीता वह गुणी माना जाता है। इसी प्रकार अनिवार्य और स्वेच्छया पंजीयनके बारेमें समझा जाये।
(५) स्वेच्छया पंजीयनसे हम सदा खुले रह सकते हैं। क्योंकि उसमें हम जितना बँधना चाहें उससे ज्यादा हमें कोई बांध नहीं सकता। स्वयंसेवक सिपाहीको अच्छा लगता है तभी वह लड़ाईमें जाता है और भूखका मारा वेतनभोगी सिपाही हमेशा लड़ाई करने के लिए बँधा हुआ है।

इसी प्रकार स्वेच्छया पंजीयनके और भी बहुत-से फायदे बताये जा सकते हैं। फिलहाल इतने काफी हैं। अंगुली आदिकी बातोंका समावेश इसमें नहीं होता। क्योंकि वह हमारी मर्जीकी बात है। किन्तु दस अँगुली और दो अँगूठोंके बीच वैज्ञानिक दृष्टिसे क्या अन्तर है इसपर अगले सप्ताह विचार करेंगे। अभी तो स्वेच्छया पंजीयन क्या है, यह ठीक तरहसे समझना है।