एक आपत्ति
अब किसी भी समय समझौता हो जाये, इसलिए संघने स्वेच्छया पंजीयनके बारेमें चर्चा शुरू की है। उसपर कुछ सज्जनोंने यह आपत्ति की है कि सबकी सलाह क्यों नहीं ली जाती। यह बात ठीक नहीं है। यदि स्वेच्छया पंजीयनकी बात नई होती तो अवश्य ही विभिन्न जगहोंसे प्रतिनिधियोंको बुलाना पड़ता। किन्तु एम्पायर नाटकघरमें जो सार्वजनिक सभा हुई थी उसमें सभी जगहोंसे बुलाये गये प्रतिनिधियोंने स्वेच्छया पंजीयन सम्बन्धी प्रस्ताव पास किया था तथा उसके सम्बन्धकी सारी बातें जान ली थीं। इसलिए अब सब जगहोंके प्रतिनिधियोंको बुलानेकी बात नहीं रहती। न उसके लिए समय ही है। फिर भी हर भारतीय चाहे जब अपने विचार प्रकट कर सकता है। इस कानूनकी लड़ाईके अन्तमें हम चाहते हैं कि हमें राजकीय मामलोंकी बूझ हो जाये। सभाएँ किस प्रकार की जाती हैं, दूसरे संगठन किस प्रकार काम करते हैं और कौमी कामका किस प्रकार संचालन किया जाता है एवं उसे निभाया जा सकता है, यह भी आ जाना चाहिए। हम दरअसल सभ्य हैं यह कहकर हम नये कानूनको रद करानेका महा प्रयत्न कर रहे हैं; तब उपर्युक्त बातोंका ज्ञान भी सच्ची सभ्यताका चिह्न है।
परीक्षात्मक मुकदमा क्यों न चलाया जाये?
कुछ लोग आपसमें पूछताछ कर रहे हैं कि हम नये कानूनके सम्बन्धमें परीक्षात्मक मकदमा क्यों न दायर करें। उसके बारेमें मैंने अपना जो विरुद्ध मत जाहिर किया है, उसके दो कारण हैं:
एक तो यह कि हमारी लड़ाई मुकदमा लड़ने की नहीं बल्कि जेल जाकर अपना बल दिखानेकी है। आत्मबलके समान दूसरी कोई चीज नहीं है। तब यदि परीक्षात्मक मुकदमा चलाया जाये तो उसमें हमारी लड़ाई बिगड़ जायेगी और हमारी हँसी होगी। गोरे तुरन्त कहने लगेंगे कि "जेल जानेवाले कहाँ गये?" इसलिए परीक्षात्मक मुकदमा लड़ना अपनी कमजोरी दिखाने के समान है।
दूसरा यह कि, नये कानून और उपनिवेशके दूसरे कानूनोंको सम्राट्की न्याय परिषद शायद ही रद कर सकती है। श्री लेनर्ड, श्री एसेलेन, श्री ग्रेगरोवस्की, श्री डक्सबरी, श्री वार्ड और श्री डी'विलियर्स हमारे विरुद्ध मत व्यक्त कर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालयने तो ऐसे फैसले बहुत किये हैं। यदि नया कानून सम्राट्की न्याय परिषद रद कर दे तो उसका अर्थ यह होगा कि काफिरोंके खिलाफ जो कानून बनाये गये हैं वे भी रद हो जायेंगे। यह कभी होनेवाला नहीं है। और यदि हो भी तो उस स्थितिको सुधारनेके लिए तुरन्त ही दूसरे कानून बनाने होंगे। यानी यह आगे जाकर पीछे फिरनेके समान होगा। विलायतसे हमने राय मँगवाई थी, किन्तु श्री रिच अभीतक नहीं भेज पाये। क्योंकि सर रेमंड वेस्टके सिवा और कोई राय देता नहीं है। इसके अलावा, हमें याद रखना चाहिए कि सर रेमंड वेस्टने हमें कानूनका विरोध करने के बजाय परीक्षात्मक मुकदमा लड़ने की सलाह दी थी। अब वे भी अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके पक्षमें आ गये हैं। इसलिए परीक्षात्मक मुकदमा कैसे हो? इसके अलावा, किसीको यह नहीं भूलना चाहिए कि परीक्षात्मक मुकदमेमें १,००० पौंडकी बात है। उतनी रकम इकट्ठा करने की ताकत किसमें है ? इसीके साथ यह भी याद रखना चाहिए कि