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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४६४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

संघकी विजय

पहले वर्गकी बग्घीमें भारतीयोंको न बैठने देने के सम्बन्धमें नगरपालिकाने नियम बनाया था। श्री ईसप मियाँने उसके खिलाफ पत्र[] लिखा था। यह पाठकोंको याद होगा। अब स्मट्स साहब लिखते हैं कि सरकार वह नियम मंजूर नहीं करेगी। क्या स्मट्स साहब भी बदले हैं? इससे प्रकट होता है कि भारतीय समाजके जोरसे लाभ ही होता है।

पासपोर्ट नहीं मिलेंगे

श्री मूसा इस्माइल मियाँ तथा श्री दावजीको पासपोर्ट न मिलनेसे उन्होंने उस सम्बन्धमें लॉर्ड सेल्बोर्नको अर्जी दी थी। लॉर्ड सेल्बोर्नने उसके जवाबमें लिखा है कि यदि सरकार पासपोर्ट दे देती है तो इसका अर्थ इसके बराबर होगा कि दोनों भारतीय पंजीकृत नहीं हुए, फिर भी सरकारने उनका वापस आनेका अधिकार स्वीकार कर लिया है। यह बात यहीं खतम नहीं होगी। श्री गांधीने फिर लॉर्ड सेल्बोर्नको पत्र[] लिखा है कि यदि उपर्युक्त फैसला कायम रहा तो यह साबित होगा कि भारतीय समाज ब्रिटिश प्रजा बिलकुल नहीं है। यदि ऐसा हो तो वह भी अच्छा है। इससे हमारी लड़ाईको अधिक बल मिलता है।

नये कानूनकी एक धारा

नये कानूनकी एक उपधारा स्वर्गीय श्री अबूबकरके उत्तराधिकारीके लिए लाभप्रद सानी जाती थी। उसपर लॉर्ड सेल्बोर्न और लॉर्ड एलगिन सबने जोर दिया था। अब वह भी उड़ गई है। उस उपधाराके अन्तर्गत जमीन उत्तराधिकारियोंके नामपर करनेका प्रयत्न किया गया तो स्मट्स साहबने आपत्ति की और कहा कि वह उपधारा इस केसमें लागू नहीं होती, क्योंकि जमीन तो गोरोंके नामपर ही चढ़ी हुई है। अदालतने इस आपत्तिको मान्य कर लिया है, यद्यपि उसने सहानुभूति व्यक्त की है। किन्तु वह सहानुभूति किस काम की? अतः कानूनकी एक धारा भी अभी तो बेकार हो गई है। यह बात भी इतनेपर ही समाप्त हो जायेगी, सो नहीं। उत्तराधिकारियोंका विचार आगे बढ़कर न्याय प्राप्त करनेका है। किन्तु इस बीच इस मामलेका विपक्ष में निर्णय हो जाने के कारण कानूनके खिलाफ एक दलील और बढ़ गई है और उस सम्बन्ध में लिखा-पढ़ी शुरू हो गई है।

कानूनका शिकार

नया कानून ऐसा काल-रूप है कि हमेशा भक्ष्य लेता रहता है। भारतीयोंका खून इस राक्षसको प्रिय है। कई हजूरिये बे-रोजगार होकर बैठे हैं। मजदूरोंके पास काम नहीं है। सिपाहियोंकी पुकार हमने सुन ही ली है। अब श्री मोहनलाल जोशीपर आ बीती है। श्री मोहनलाल जोशी प्रिटोरिया न्यायालय में अच्छे वेतनपर दुभाषियेकी नौकरी करते थे। पंजीयन न करवाने के कारण सरकारने उन्हें कार्य-विरत कर दिया है। यह जुल्म कम नहीं है। उनके बाल-बच्चे हैं फिर भी श्री जोशीने देशके खातिर नौकरीकी परवाह नहीं की। परन्तु उन्होंने अपनी और समाजकी आबरू रखी इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। इस प्रकार बेरोजगार होनेवालोंको नौकरी देना भारतीयोंका काम है। जिन भारतीयोंको मुंशीको जरूरत हो उनसे मेरी विशेष प्रार्थना है कि वे श्री जोशी तथा उसी तरह बेरोजगार होनेवाले लोगोंको काम दें।

  1. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ४०८।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।