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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

शोक

यहाँके प्रसिद्ध व्यापारी श्री दादाभाईको स्वदेशसे खबर मिली है कि उनके बड़े लड़केका प्लेगसे देहान्त हो गया। इससे वे अत्यन्त शोक-ग्रस्त हो गये हैं। उन्हें बहुत से लोगोंकी ओरसे समवेदना प्राप्त हुई है। उनमें मैं भी शामिल होता हूँ।

मुहम्मद इशाकका मुकदमा

यह मुकदमा[१] बुधवारको श्री जोर्डनकी अदालत में पेश हुआ था। सैंतीस भारतीयोंपर जो आरोप लगा था वही श्री मुहम्मद इशाकपर भी लगाया गया। श्री चैमने भी उपस्थित थे। उनके विरुद्ध बयान देनेवाले अधिकारीने वैसा ही बयान दिया, जैसा सैंतीस आदमियोंके मुकदमे में दिया था। श्री गांधीने श्री मुहम्मद इशाकको बिना बयान लिये छोड़ देनेकी मांग की। श्री जोर्डनने लम्बा फैसला देते हुए कहा कि श्री मुहम्मद इशाकको अपने अनुमतिपत्रके आधारपर रहनेका पूरा हक है। शान्ति-रक्षा अध्यादेशके आधारपर उन्हें बिलकुल निर्वासित नहीं किया जा सकता। इसलिए उन्हें निर्दोष मानकर छोड़ दिया गया।

लिंड्ज़ेका भाषण

श्री लिंड्ज़े प्रगतिशील दलके एक नेता हैं। उन्होंने भाषण देते हुए कहा कि सरकार भारतीयोंपर कोई सख्ती नहीं बरतेगी। प्रवासी कानून उनके खिलाफ इस्तेमाल किये जानेके लिए नहीं बनाया गया है। भारतीयोंको निकालनेका एक ही रास्ता है कि उनके परवाने बन्द किये जायें। यह काम जनवरी महीने से किया जा सकेगा। किन्तु इस सबको मैं बकवास समझता हूँ। पहली बात जेलको थी। फिर देश-निकालेकी चली। अब परवानेपर आये हैं। इस तरह यदि भारतीय समाज अन्ततक हिम्मत और एकतासे रहा तो कानून अपने-आप सो जायेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-१२-१९०७
  1. देखिए "मुहम्मद इशाकका मुकदमा", पृष्ठ ४०७-८।
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