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३२८. पत्र: उपनिवेश सचिवको

[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १४, १९०७]

[सेवामें

माननीय उपनिवेश सचिव

प्रिटोरिया
महोदय,]

निवेदन है कि कल मैं जोहानिसबर्ग जेलसे छोड़ दिया गया। मुझे एशियाई कानून संशोधन अधिनियम तथा शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत एक मासका कारावास हुआ था, क्योंकि गत तीस सितम्बरके बाद भी, जो मेरे अनुमतिपत्रकी अवधिका अन्तिम दिन था, मैं उपनिवेशमें बना रहा। मैंने एशियाई पंजीयककी इस आज्ञाका कि मैं उपनिवेशसे चला जाऊँ, उल्लंघन किन कारणोंसे किया, इसका उल्लेख मैंने उनके नाम लिखे अपने पत्रमें किया है। जर्मिस्टनका हिन्दू मन्दिर आज जिस रूपमें है सो मेरी ही बदौलत है। मैं उस मन्दिरका एकमात्र पुरोहित था और अब भी हूँ। कल वहाँ जानेपर मैंने उसे उजड़ी हुई दशामें पाया। मन्दिर पूरे माह बन्द पड़ा रहा। कल उस मन्दिरकी हालत देखकर मेरी जो मनोदशा हुई उसे मैं यहाँ पर्याप्त रूपसे व्यक्त करने में असमर्थ हूँ।

मैं जानता हूँ कि यदि मैं कारावाससे बचना चाहता हूँ तो उपनिवेशके कानूनके अनुसार मुझे सात दिनोंके अन्दर उपनिवेश छोड़ देना चाहिए। परन्तु उपनिवेशके कानूनोंसे भी उच्चतर एक अन्य कानून मुझे दूसरा ही मार्ग ग्रहण करनेको प्रेरित करता है। वह मार्ग यह है कि एक ब्रिटिश प्रजा और जर्मिस्टनके हिन्दू मन्दिरका पुरोहित और धर्मोपदेशक होने के नाते, परिणामोंका विचार किये बिना, मैं अपने कर्तव्य पथपर दृढ़ रहूँ। अतः अत्यन्त विनय और आदरके साथ साम्राज्य सरकारके तथा स्थानीय सरकारके प्रति अपने कर्तव्योंका पूरा खयाल रखते हुए मैं आपको सूचित करना चाहता हूँ कि उपनिवेशसे बाहर चले जानेका मेरा इरादा नहीं है। यदि सरकार अनुमतिपत्र प्रदान करके मुझे अपने मन्दिर तथा मन्दिरमें आनेवाले भक्त-समाजके प्रति अपने कर्तव्यका पालन करने दे—और मैं इसके निमित्त इसीके द्वारा आवेदन भी कर रहा हूँ—तो उक्त समाज और मैं स्वयं सरकारकी शक्तिकी सराहना करेंगे।

इस सम्बन्धमें मैं यह निवेदन किये बिना नहीं रह सकता कि जिन आरोपोंका इशारा एशियाइयोंके पंजीयकने किया था और जिनकी बिनापर मेरे अनुमतिपत्रकी अवधि बढ़ानेसे इनकार किया गया है, उनका अबतक मुझे कोई ज्ञान नहीं है। जहाँतक मैंने उनका अनुमान किया है, वे निराधार थे। यदि मेरे विरुद्ध कोई आरोप हो तो मेरी प्रार्थना है कि वे सूत्रबद्ध कर लिये जायें और मुझपर मुकदमा चलाया जाये; और यदि मैं अपने किसी भी काममें अपने धर्मसे, जैसा कि मैं उसे समझता हूँ, अथवा धर्मोपदेशकके कर्तव्यसे डिग गया होऊँ तो मुझे तुरन्त और स्वयमेव उपनिवेश छोड़ देना चाहिये। यदि मुझपर लगाये गये आरोप इस प्रकारके हैं जिनके बलपर कानूनन मुझपर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता तो भी मैं