ऐसे किसी निष्पक्ष कानूनी प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तिके सामने, जिसे सरकारने खास इसी कामके लिए नियुक्त किया हो, उनका जवाब देनेको तैयार हूँ। यह कमसे-कम है, जो मैं एक सभ्य और शिष्ट सरकारसे माँगनेकी धृष्टता कर सकता हूँ।
[आपका, आदि,
रामसुन्दर पण्डित]
इंडियन ओपिनियन, २१-१२-१९०७
३२९. पत्र: उपनिवेश सचिवको
जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १८, १९०७
[प्रिटोरिया]
संदर्भ: स्वर्गीय अबूबकर आमद [की] जायदाद
जैसा कि सरकारको मालूम है, एशियाई कानून संशोधन अधिनियमकी धारा १७ इसलिए जोड़ दी गई थी कि इस जायदादके उत्तराधिकारियोंको राहत मिले और वे नं॰ ३७३, चर्च स्ट्रीट, प्रिटोरियाकी जायदाद, जिसे स्वर्गीय अबूबकर आमदने १८८५ के कानून ३ के पास होनेसे पहले खरीदा था, अपने नाम रख सकें। गत वर्ष इस धाराका मसविदा तैयार होने से पहले वे परिस्थितियाँ, जिनके अन्तर्गत यह जायदाद श्री पोलकको हस्तान्तरित की गई थी, तत्कालीन महान्यायवादीके सामने रखी गई और ऐसा समझा गया कि यह धारा इस मामलेको सुलझाने के लिए प्रस्तुत की गई है। इस जायदादका पट्टा उत्तराधिकारियोंके पक्षमें, जो भारतीय हैं, पंजीयनके लिए तैयार किया गया और पट्टोंके पंजीयकके समक्ष पेश किया गया। परन्तु उन्होंने हस्तान्तरणको अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनकी सम्मतिमें यह मामला इस धाराके अन्तर्गत नहीं आता था। तब यह मामला न्यायमूर्ति वैसेल्सकी अदालतमें पेश हुआ। उन्होंने पंजीयकके मतको बहाल रखा। इस तरह सम्बन्धित धारा उत्तराधिकारियोंको राहत देनेमें बेअसर साबित हुई है। क्या मैं भरोसा करूँ कि सरकार इन उत्तराधिकारियोंको राहत देगी? मेरी विनम्र रायमें इसे करनेकी सबसे सत्वर विधि होगी उक्त स्ट्रीटको भारतीयों द्वारा कब्जा करने योग्य करार देना ।[१]
आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी
इंडियन ओपिनियन, १-२-१९०८
- ↑ किन्तु इसे अधिकारियोंने अस्वीकार कर दिया था।