३३०. पत्र: म॰ द॰ आ॰ रेलवेके महाप्रबन्धकको
[जोहानिसबर्ग]
दिसम्बर, २०, १९०७
म॰ द॰ आ॰ रेलवे
मध्य दक्षिण आफ्रिका रेलवे में नौकरी करनेवाले स्टैंडर्टनके भारतीयोंके जिस मामलेके बारेमें मैंने आपसे टेलीफोनपर बात की थी वह, जितना अधिक मैं सोचता हूँ, उतना ही अधिक महत्त्वपूर्ण दिखलाई देता है। फलतः मेरे संघका यह कर्तव्य होगा कि वह प्रयत्नपूर्वक सार्वजनिक सदाचार तथा आवश्यकता पड़नेपर, कानूनके प्रश्नके रूपमें उसका समाधान ढूंढे। लेकिन मेरा संघ कानूनी संघर्षको टालने के लिए अत्यधिक उत्सुक है। इसलिए आपसे मेरा अनुरोध है कि यदि सम्भव हो तो आप उनको नोटिसके बदलेमें एक मासका वेतन दे दें। मेरी नम्र सम्मतिमें इन लोगोंको कमसे-कम इतनी-सी सुनवाईका हक जरूर है। शायद मुझे यह भी बतला देना चाहिए कि मैंने स्टैंडर्टनकी समितिको तार भेजकर उन आदमियोंको यह सलाह दी है कि वे एक माहके नोटिसके बदलेमें मजदूरीका दावा करनेका अपना अधिकार सुरक्षित रखते हुए, जो कुछ भी उन्हें दिया जाये, उसे स्वीकार कर लें।
आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी
अवैतनिक मंत्री
ब्रिटिश भारतीय संघ
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७