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३३२. रामसुन्दर पण्डित

पण्डितजी छूट गये, और जबतक यह अंक हमारे पाठकोंके हाथमें पहुँचेगा तबतक फिर पकड़े भी जा सकते हैं। पण्डितजीका जीवन अब अपना नहीं रहा, वह सार्वजनिक है। उन्होंने अपना जीवन समाजको समर्पित कर दिया है। अब वापस नहीं ले सकते। पण्डितजीका उत्साह बहुत ही प्रशंसनीय है। उनपर बड़ी जिम्मेदारी है। वे खुद पुजारी हैं और धर्मकी शिक्षा देते है। इसलिए हम उनमें वैराग्य या फकीरीका दर्शन पानेकी आशा करते हैं। वैसे पुरुषको वीतराग, सहज सुशील, शान्त, सत्यवादी और अपरिग्रही होना चाहिए। जबतक ऐसे लोग बड़ी संख्या में पैदा नहीं होते तबतक भारतकी मुक्ति भी नहीं होगी। पण्डितजीने जबरदस्त कदम उठाया है और जो सम्मान प्राप्त किया है उसे वे सदा ही बनाये रखेंगे, ऐसी आशा है और ईश्वरसे प्रार्थना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-१२-१९०७

३३३. हाजी हबीब

श्री हाजी हबीबने ट्रान्सवाल छोड़ दिया है और अब वे डर्बनमें रहनेवाले हैं। इसलिए प्रिटोरियामें उन्हें भोज दिया गया था। उसका हाल हम इस अंकमें छाप रहे हैं। समाजका यह समय इतना खराब है कि ऐसे समयमें मान-सम्मान आदिका खयाल हो, यह सम्भव नहीं। नहीं तो क्या श्री हाजी हबीबकी विदाई भोजसे ही हो जाती? श्री हाजी हबीबकी [समाज] सेवा बहुत ही दीर्घकालीन है। श्री हाजी हवीबने सैकड़ों लोगोंका इतना काम किया कि उसका बदला नहीं चुकाया जा सकता। और इतना सब करने में उन्होंने अपना लाभ नहीं देखा। समाजके कामके लिए वे सदा तैयार ही रहे। उनमें जितनी आतुरता है उतनी ही होशियारी भी है। उनके साथ बहस करने में गोरे अधिकारी मुसीबतमें आ पड़ते थे। हमें आशा है कि श्री हाजी हबीबने ट्रान्सवालमें जैसा काम किया है वैसा ही वे डर्बनमें भी करेंगे; और सार्वजनिक काममें पूरा हिस्सा लेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-१२-१९०७