३३७. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें
[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर २२, १९०७]
हमें इस विजयके कारण फूल नहीं जाना चाहिए[१]। युद्धके दिनोंमें डच लोगोंने पहले मैदान छोड़ भागनेका ढोंग रचा; बादमें वे अंग्रेजोंपर टूट पड़े। उसी प्रकार सरकार शायद पहले यह दिखाये कि वह हार गई है और आगे चलकर वार कर बैठे। इसलिए हमें तो ऐसा समझना चाहिए कि हमारा संघर्ष आज ही शुरू हुआ है। अगर सरकार परवाने न दें तो हम लोग बिना परवानेके ही व्यापार करते रहें और गिरफ्तार हो जानेपर जुर्माना अदा न करें, जेल भले चले जायें। इसके अतिरिक्त हमें एक एकता-भवनका निर्माण अवश्य करना चाहिए। यह काम बहुत थोड़े धनसे हो जायेगा। उसके द्वारा हम ऐसे भारतीयोंको, जो बेरोजगार हो गये हैं, काम दे सकते हैं। परवानों के बारेमें जो स्थिति है उसे लोगोंको समझाने के लिए फिर एक सार्वजनिक सभा करनी चाहिए।
चूँकि मौलवी मुख्त्यार साहबके परवाने की मियाद समाप्त हो रही है, इसलिए श्री गांधीने उससे सम्बन्धित कुछ बातोंकी चर्चा की और फिर संघर्षके बारेमें बताया।
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७
३३८. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें[२]
[फीडडॉर्प
दिसम्बर २७, १९०७]
श्री गांधीने कहा:जब मैंने आज प्रातःकाल प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम सम्बन्धी घोषणा पढ़ी, तब पहली बात, जो अपने-आप मेरी जुबानपर आई, यह थी कि लॉर्ड एलगिनने भारतीयोंकी राजभक्तिपर अनुचित भार डाल दिया है। भारतके भूतपूर्व वाइसराय लॉर्ड एलगिन भारतीय परम्पराओंको बिलकुल भूल गये हैं। वे महामहिम सम्राट्को इस कानूनपर मंजूरी देने की सलाह देते समय यह बात बिलकुल भूल गये कि वे भारतके लाखों लोगोंके न्यासी हैं। वे बिलकुल भूल गये कि भारत एक ऐसे मार्गपर पग रखनेवाला है जो भारतीय इतिहास अज्ञात है। भारत कभी क्रान्तिकारी नहीं रहा; किन्तु आज हम देखते हैं कि कुछ भारतीयोंके मस्तिष्कोंम क्रान्तिकारी भावना प्रविष्ट हो गई है। जिस दिन भारतमें तीव्र
- ↑ गांधीजीने रामसुन्दर पण्डितकी रिहाईका जिक्र करते हुए हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें भाषण दिया था; देखिए "रामसुन्दर पण्डित", पृष्ठ ४३८ और ३९ भी।
- ↑ हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके भवनमें गांधीजीने शामको एक भरी सभा भाषण दिया। उसी दिन सुबह उन्हें टेलिफोन द्वारा ट्रान्सवालके कार्यवाहक पुलिस आयुक्त श्री एच॰ एफ॰ डी॰ पेपेनफसका सन्देश मिला था कि गांधीजी उनसे जाकर मिलें। वहाँ पहुँचनेपर उन्हें बताया गया कि उनकी तथा थम्बी नायडू (मुख्य धरनेदार, जोहानिसबर्ग), पी॰ के॰ नायडू (धरनेदार, जोहानिसबर्ग), सी॰ एम॰ पिल्ले, जमादार नवाबखाँ (धरनेदार, जोहानिसबर्ग), करवा (भूतपूर्व सिपाही, जोहानिसबर्ग), ल्यूंग क्विन (अध्यक्ष चीनी संघ, जोहानिसबर्ग), जॉन फोर्तोइन (चीनी धरनेदार), मार्टिन ईस्टन (जोहानिसबर्ग), रामसुन्दर पण्डित (जर्मिस्टन), जी॰ पी॰ व्यास (प्रिटोरिया), ए॰ एफ॰ सी॰ बेग (प्रिटोरिया), एम॰ आई॰ देसाई (मुख्य धरनेदार, प्रिटोरिया), ए॰ एम॰ काछलिया (प्रिटोरिया), इस्माइल सुलेमान सूज (प्रिटोरिया), गुलाम मुहम्मद अब्दुल रशीद (प्रिटोरिया), बी॰ गंगाराम (प्रिटोरिया), वी॰ यू॰ सेठ (प्रिटोरिया), इस्माइल जूमा (प्रिटोरिया), रहमत खाँ (प्रिटोरिया), एम॰ एम॰ खंडेरिया (पीटर्सबर्ग), अमरशी गोकुल (पीटर्सबर्ग), और अम्बालाल ( पीटर्सबर्ग), की गिरफ्तारीके हुक्म हो चुके हैं। गांधीजीने वचन दिया कि सभी दूसरे दिन शनिवार दिसम्बर २८ को सुबह १० बजे अपने-अपने न्यायाधीशों के सामने हाजिर होंगे। श्री पेपेनफ्सने यह जमानत स्वीकार कर ली। देखिए इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८।