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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

या कैद कर दिया जाये तो यह हमारे लिए सम्मानकी बात है। हमारे लिए सम्मानजनक यह नहीं होगा कि हम अपने पुनीत कर्तव्योंको त्याग दें और अपने मनुष्यत्व और आत्मसम्मानको तिलांजलि दे दें—केवल इसलिए कि हम कुछ तुच्छ पेंस या पौंड कमा रहे हैं। मैंने आपको जो सलाह दी है उसपर मुझे कभी खेद न होगा। आपने यह लड़ाई, जो १५ महीनेसे चालू है, अच्छी तरहसे लड़ी है।[१] यह एक ऐसा कानून है जिसको कोई भी आत्म-सम्मानी राष्ट्र या व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता—सो इसके नियमोंके कारण नहीं, बल्कि इस कारण कि यह निकृष्टतम ढंगका वर्गीय कानून है, जिसका आधार है समाजके प्रति सरासर अविश्वासका भाव और निराधार दोषारोपण। हमने लॉर्ड सेल्बोर्न और जनरल स्मट्ससे कहा है कि इन आरोपोंको एक निष्पक्ष न्यायालयके सम्मुख सिद्ध किया जाना चाहिए। ये ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाये गये हैं जो पक्षपातमें डूबा हुआ है और तथ्यको परख सकनेमें असमर्थ है। सरकार यह बात क्यों नहीं मान रही है कि उन्हें जो कमसे-कम दिया जा सकता है, वह है निष्पक्ष जाँच। "श्री गांधीने इस तथ्यके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा कि भारतीयोंको कोई प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है; किन्तु उन्होंने यह चर्चा अवश्य की कि सरकार उन लोगोंकी भावनाओंके सम्बन्धमें इतनी कठोर क्यों है जिनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। (उन्होंने आगे कहा,) "मुझे यह मालूम होता है कि अब हमारे अलग-अलग होनेका वक्त आ गया है। यदि साम्राज्य सरकार भारतके लोगोंपर, संगीनकी नोकके बल नहीं, बल्कि उनके प्रेमके बल अपना आधिपत्य बनाये रखना चाहती है तो उसको झिझकना चाहिए। इंग्लैंडको भारत और उपनिवेश दोनोंमें से एकको चुनना पड़ सकता है। सम्भव है, ऐसा आज या कल न करना पड़े, किन्तु मेरा खयाल है कि लॉर्ड एलगिनके कार्यसे इसके बीज वपित हो गये हैं। मैंने जब एशियाई अधिनियममें प्रवासी अधिनियम ऊपरसे जोड़ा हुआ देखा तब नर्म शब्द चुनना या अपनी आलोचनाको संयमित करना मेरे लिए सम्भव नहीं रहा। एक कहानी है कि मुहम्मद और उनके दो[२] अनुयायी एक बड़ी शत्रु-सेना द्वारा पीछा किया जानेपर एक गुफाम आश्रय ले रहे थे। उनके साथी निराश होकर पूछने लगे कि इतने बड़े सैन्य बलके मुकाबले हम तीन क्या कर सकेंगे। मुहम्मदने कहा: "तुम कहते हो, हम तीन हैं; मैं कहता हूँ हम चार हैं, क्योंकि ईश्वर हमारे साथ है, और उसके हमारी ओर होनेसे हम जीतेंगे।" ईश्वर हमारे साथ है, और जबतक हमारा उद्देश्य अच्छा है, तबतक हम यह खयाल तनिक भी नहीं करते कि सरकारको क्या अधिकार दिये जाते हैं, या वे अधिकार कितनी बर्बरतासे प्रयोग में लाये जाते हैं। मैं तो तब भी यही सलाह दूंगा जो मैंने पिछले १५ महीने से देनेकी हिम्मत की है।[३]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८
  1. यह संघर्ष सितम्बर १९०६ में आरम्भ किया गया था। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४२८-३४।
  2. मूलमें तीन है।
  3. सभामें सर्वसम्मतिसे एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमका विरोध किया गया था और जिसकी नकल उच्चायुक्तकी मारफत साम्राज्य सरकार को भेजी जानेवाली थी।