३३९. डेलागोआ-बेके भारतीय
हम अन्यत्र उन उल्लेखनीय नियमोंका[१] पूर्ण पाठ प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हें डेलागोआ-बेकी स्थानीय सरकारने एशियाइयोंके आव्रजनपर प्रतिबन्ध लगाने के लिए बनाया है। ये नियम तीन प्रकारके प्रवासियों, अथवा यों कहिए कि एशियाई पर्यटकोंके बारेमें है: (१) डेलागोआ-बेको छोड़कर जानेवालोंके बारेमें; (२) डेलागोआ-बेमें बाहरी जिलोंसे आनेवालोंके बारेमें; (३) एशियाकी पुर्तगाल बस्तियोंसे आनेवाले एशियाई लोगोंके बारेमें। इन नियमोंमें अवश्य ही ट्रान्सवालकी गन्ध है। गवर्नर जनरलके पास डेलागोआ-बेके जो एशियाई गये उनसे कहा गया कि ये नियम इसलिए आवश्यक हैं "कि प्रान्तपर आसपासके उपनिवेशोंसे एशियाई प्रवासियोंकी भारी भीड़के आनेका खतरा है, और ये नियम केवल अस्थायी हैं।" हमको विश्वास है कि गवर्नर जनरलके इस स्पष्टीकरण से डेलागोआ-बेके भारतीय सन्तुष्ट होकर नहीं बैठ जायेंगे। वास्तवमें पुर्तगाली इलाके में ट्रान्सवालसे कोई भीड़ नहीं आती और यदि आती भी हो तो उस प्रान्तमें पहले से बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंको तंग करनेमें कोई औचित्य नहीं है। उदाहरणार्थ, वे बाहर जानेके लिए अपने पास एक विशेष अनुमतिपत्र क्यों रखें? हमें मालूम हुआ है कि उनको स्थायी दस्तावेज पहले ही दिये जा चुके हैं। फिर, भारतीय लोग परवानीके बिना अथवा इस बातका प्रमाण दिये बिना, कि वे न तो अपराधी हैं और न दिवालिए, डेलागोआ-बेसे क्यों नहीं जा सकते? यह हो सकता है कि एक खास परिस्थितिमें इस प्रकारकी दूरन्देशी सम्भवतः सार्वजनिक न्यायकी दृष्टिसे उचित हो, किन्तु एशियाइयोंने अपराध तथा दिवालियेपनका ठेका तो नहीं ले लिया है। यूरोपीय बिना यह साबित किये, कि उन्होंने न तो अपराधीके रूपमें कानूनोंको तोड़ा है और न दिवालिये बने हैं, डेलागोआ-बेसे चाहे जितनी बार आ-जा सकते हैं। इन कठोर नियमोंका एकमात्र अच्छा पहलू यह है कि पुर्तगाल सरकारने उन एशियाइयोंमें भेदकी विभाजक रेखा खींचना जरूरी समझा है जो उसकी अपनी प्रजा हैं तथा जो उसकी अपनी प्रजा नहीं हैं। अन्य उपनिवेशोंकी ब्रिटिश सरकारोंने ऐसा नहीं किया है। हमारा विश्वास है कि डेलागोआ-बेके एक विदेशी राज्य होने के कारण लॉर्ड एलगिन इन परेशान करनेवाली पाबन्दियोंसे छुटकारा दिलानेका कोई-न-कोई तरीका खोज निकालेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७
- ↑ यहाँ प्रकाशित नहीं किये गये। "डेलागोआ-बेके भारतीय" पृष्ठ ४५० भी देखिए।