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३४०. बेरोजगार लोगोंका क्या किया जाये?

हमारे इस बारके अंकम पाठक देखेंगे कि स्टैंडर्टन तथा हाइडेलबर्गमें रेलवेमें काम करनेवाले भारतीय बेरोजगार हो गये हैं। और उसका कारण यह है कि उन्होंने खूनी कानूनके सामने झुकने से इनकार किया है। इस प्रकार यदि बहुतसे लोग बेरोजगार हो जायें तो क्या किया जाये यह विचार हर भारतीयको करना चाहिए। हम कई बार कह चुके हैं कि जेल जानेसे जो आर्थिक नुकसान हो वह जेल जानेवालेको स्वयं बर्दाश्त कर लेना चाहिए। उसमें समाज मदद नहीं कर सकता। किन्तु जब सैंकड़ों लोग भूखों मरने लगें तब हम कुछ विचार न करें तो यह बड़ी क्रूरता होगी। इसके अलावा, हमने पढ़ा है कि "पेट कराये बेगार, पेट बाजा बजवाये।" पेटके लिए भारतमें अकालग्रस्त लोग अपने बच्चोंको बेच देते हैं। तब इस पापी पेटके लिए लोग पंजीयनपत्र लेने को तैयार हो जायें तो उसमें अनोखी बात नहीं होगी। यानी, यदि बहुत-से लोग बेरोजगार हो जायें तो उनकी मदद करना बिलकुल जरूरी हो जायेगा। इस विचारको समझकर हर भारतीयको, जितनी हो सके उतनी सहायता, संघके नाम जोहानिसबर्ग भेजनी चाहिए। पैसा प्राप्त होने के बाद क्या किया जाये यह दूसरा प्रश्न है जिसपर हमें सोचना है। यदि लोगोंको, बिना कुछ काम लिये, रोजाना पैसा या भत्ता दिया जाता रहे तो उससे पाप बढ़ेगा, और इतना निश्चित है कि उसका असर पैसा या भत्ता लेनेवालेपर बुरा होगा। इसलिए हम मानते हैं किसी-न-किसी सार्वजनिक काममें उनकी मदद अवश्य ली जाये। श्री गांधीने एक बड़ा सभा-भवन बनानेका सुझाव रखा है। यह काम बड़ा है, करने योग्य है और अधिकांश भारतीय मदद करें तो सहज ही हो सकता है। इससे तीन काम बनते हैं। ट्रान्सवालमें कौमको राजकीय कामोंके लिए एक बड़ा भवन मिल जायेगा, बेरोजगार भारतीयोंका पोषण होगा और वैसा भवन बनाने से भारतीय लड़ाईको जबरदस्त विज्ञापन मिलेगा। यदि ट्रान्सवालके भारतीय सभा-भवन बनवायें तो उसका लाभ उन्हें ही होगा यह समझकर ट्रान्सवालसे बाहरके भारतीय हाथपर-हाथ धरे न बैठे रहें । सभाभवन बने या न बने, बेरोजगार लोगोंको काम तो देना ही होगा। इसलिए हर भारतीयको इस बातका ध्यान रखना चाहिए। यदि सभा-भवन बनाया जाता है तो बहुत-सा खर्च ट्रान्सवालके भारतीयोंको स्वयं ही उठाना होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७