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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

है, "जो व्यक्ति अपने सम्मानको अक्षुण्ण नहीं रखता और बेशर्म होकर जीता है, उसका जीवन व्यर्थ है और उसे इस जीवनमें सुख नहीं मिलता।" आचरणके विषयमें कहा है कि "जो मनुष्य सचमुचमें नीतिवान नहीं है, वह धार्मिक नहीं कहा जा सकता।" ज्ञानके विषयमें लिखते हुए कहा है, "जिस प्रकार बिना हथियारके वीर पुरुष लाचार हो जाता है, उसी प्रकार साधारण मनुष्य बिना विद्याके निकम्मा होता है।" "राजा मनुष्योंपर राज्य करते हैं। बुद्धिमान मनुष्य राजाओंपर।" "बुद्धिमान मनुष्य वह है जो गलत रास्तेपर पाँव नहीं रखता। वह नहीं जो पहले दोषमें पड़कर बादमें उससे निकलनेका रास्ता ढूंढ़ता है।" सत्यके विषयम कहा है कि "जिस मनुष्यका मन साफ नहीं है, उसका कोई धर्म नहीं है और जिसकी वाणी निर्दोष नहीं है उसका हृदय स्वच्छ नहीं है।" "जो नमाज पढ़ता है और रोजा रखता है, पर साथ-साथ झूठ भी बोलता है, वचनकी रक्षा नहीं करता, वह अपना कर्तव्य पूरा नहीं करता। उस मनुष्यको ढोंगी समझो।" इस छोटी-सी पुस्तिकामें ऐसे स्वर्ण-वचन समाये हुए हैं। जो अंग्रेजी समझ सकते हैं, ऐसे सभी व्यक्तियोंको हम यह पुस्तिका खरीदनेकी सलाह देते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७

३४७. जोहानिसबर्गको चिट्ठी
सार्वजनिक सभा

बुधवार, जनवरी १ को चार बजेसे सूरती मसजिदके सामने भारतीयोंकी एक सार्वजनिक सभा होगी। उसमें जनवरी तथा उसके बादकी परवाने आदि सम्बन्धी लड़ाईकी बाबत विचार किया जायेगा। आशा है हर जगहके भारतीय आकर उसमें शामिल होंगे।

परवानेके बारेमें विचार

इस विषय में कुछ विचार तो हम पिछले सप्ताह कर चुके हैं। किन्तु अभी और भी विचार करना चाहिए। सच्ची लड़ाई परवानेकी होगी, यह माना जा सकता है। इतना निश्चित है कि परवाने के बिना व्यापार करना होगा। विचार करनेपर मालूम होता है कि सभी धन्धोंके लिए परवाना लेनेके पहले पंजीयनपत्र दिखाना आवश्यक नहीं है। कानूनमें ट्रेडिंग लाइसेन्स यानी व्यापारिक-परवाना शब्द काममें लाया गया है। इस परवानेमें सायकिलके या धोबीके परवानेका समावेश नहीं होता। इसलिए धोबी पंजीयनपत्रके बिना परवाना ले सकता है। जरूरत अधिकतर व्यापारियों और फेरीवालोंको होगी। इन दोनों वर्गोंके भारतीय बहादुरी दिखायेंगे तो समाजकी मुक्ति जल्दी होगी। कानूनका अध्ययन करके यह भी देखता हूँ कि जनवरीके महीनेमें भारतीयोंपर बहुत करके मुकदमा नहीं चल सकेगा। जिस व्यक्तिने परवाना न लिया हो उसपर एक महीने तक मुकदमा नहीं चल सकता। इसलिए जान पड़ता है कि मुकदमे केवल फरवरीके महीनेमें चलेंगे। जिन व्यापारियोंको डर हो और वे शादीशुदा हों तो वे अपनी पत्नीके नाम परवाना ले सकते हैं। इस तरह परवाना लेनेपर वे जेलसे बच सकते हैं। किन्तु हमारी लड़ाई बहादुर बनने और बहादुरी दिखानेकी है। इसलिए इस तरह बचनेकी सलाह मैं नहीं दे सकता। मेरी सलाह है कि परिपाटीके अनुसार