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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४८९

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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

हर भारतीयको परवानेकी अर्जी देनी चाहिए। उसके लिए वकीलका खर्च उठानेकी जरूरत नहीं है। अर्जी देकर, पैसे भर देनेका वादा करके, बैठे रहना चाहिए।

मौलवी साहब

मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारका मीयादी अनुमतिपत्र दिसम्बर ३१ को समाप्त हो रहा है। इसलिए उन्होंने मीयाद बढ़ाने के लिए अर्जी दी है। मैं आशा करता हूँ कि मीयाद नहीं बढ़ेगी और मौलवी साहब जनवरी महीनेमें जेलमें विराजमान होंगे। किन्तु मेरी यह आशा व्यर्थ दिखाई देती है। सरकारमें इतना दम नहीं है। समय ऐसा है कि वह मीयाद दे भी दे; और न दे तब भी स्वतन्त्र रहने देगी।

पण्डितजीको जवाब

स्मट्स साहब पण्डितजीके पत्रका जवाब दे चुके हैं। उन्होंने लिखा है कि पण्डितजीको अनुमतिपत्र नहीं दिया जा सकता। इसके सिवा और कुछ नहीं लिखा। इसका अर्थ मैं यह करता हूँ कि अनुमतिपत्र भी नहीं देंगे और पकड़ेंगे भी नहीं।

स्टैंडर्टनके भारतीय

स्टैंडर्टन में रेलवेमें काम करनेवाले मजदूरोंने पंजीयन नहीं करवाया, इसलिए उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया है। वे लगभग ४० व्यक्ति होंगे। उन्हें नोटिस नहीं दिया गया है। श्री पटेल लिखते हैं कि जिस दिन उन्हें अलग किया गया उस दिनका वेतन नहीं दिया गया। उन्हें एक महीनेका खर्च दिया गया है। जितना बचा वह रेलवेवाले ले गये। और स्त्री बच्चोंके लिए बिचारे मजदूर मिन्नतें करते रहे, फिर भी उन्हें उसी दिन झोंपड़ियोंसे निकालनेके लिए छप्पर उतार लिये गये। इस सम्बन्धमें महाप्रबन्धकसे पत्र-व्यवहार चल रहा है। महाप्रबन्धकने चालू महीने के अन्ततक का वेतन चुकानेका हुक्म दिया है। संघने एक महीनेके वेतनकी मांग की है। यह मामला हर भारतीयका खून खौलानेवाला है। स्वतन्त्र और बलवान भारतीयोंसे सरकार डरती है, इसलिए गरीबोंको डराती है। यह तो जुल्मकी हद हो गई। ये गरीब मजदूर व्यापारियों और ऐसे ही दूसरे प्रमुख भारतीयोंके भरोसे बेरोजगार हो गये हैं। अतः अब यदि आखिरी घड़ीमें वही व्यापारी और नेता पस्तहिम्मत हो जायेंगे और जेल या नुकसानके डरसे गुलामी स्वीकार कर लेंगे तो उन्हें गरीब भारतीयों और उनके बालबच्चोंकी हाय लगेगी।

हाइडेलबर्गमें भारतीय मजदूर

हाइडेलबर्गमें भारतीय मजदूरोंको डराकर मजिस्ट्रेट के सामने ले गये थे। तब अफवाह फैली कि वहाँ उन्होंने पंजीयन करवानेकी इच्छा व्यक्त की है। इसपर पण्डितजी और श्री नायडू वहाँ पहुँचे। लोगोंसे मिले। उन लोगोंका सरदार अब्दुल नामक एक पठान है। उसने बहुत हिम्मत दिखाई और कहा कि एक भी व्यक्ति पंजीकृत नहीं होगा। फिर पण्डितजी और नायडू फॉरच्यू गये। वहाँ रातमें श्री मोगलियाके घर रहे और सवेरे काम शुरू किया। दिन-भर पैदल घूमकर भारतीयों को कानूनकी जानकारी दी। कहीं-कहीं उन्हें नदी-नाले पार करने पड़े। वह कष्ट उठाया। इन मजदूरोंको भी कार्यमुक्त किया जायेगा या किया जा चुका होगा। विशेष