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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

आपसमें अँगूठेकी निशानी भेजते हैं। पेंशन पानेवाले आदि लोगोंसे रसीदपर अँगूठेकी निशानी ली जाती है। नेटालमें पी॰ नोट[१] पर अँगूठा लगानेका रिवाज हो गया है। इस तरह अंगूठे लगानेका यह उद्देश्य है कि उससे मनुष्यकी पहचान तुरन्त की जा सकती है। एककी जगह दो अँगूठे लगवानेका हेतु यह है कि यदि एक अँगूठा बराबर न उठा हो या उसकी निशानी घिस गई हो अथवा और कोई दोष हो तो दूसरे अँगूठेकी निशानी काम दे सके। शिनाख्तमें इसके सिवा अँगुलियोंकी निशानीकी जरूरत नहीं होती। दस अंगुलियोंकी निशानी अपराधियोंसे ली जाती है। क्योंकि अपराधी स्वयं अपनी पहचान कराना नहीं चाहते। वे छिपकर रहना चाहते हैं। जिसको दस अंगुलियाँ लगवाई गई हों उसका नाम न होनेपर भी उसे अँगुलियोंके आधारपर पहचाना जा सकता है। अन्वेषकोंने एक कोष्ठक तैयार किया है। उसके आधारपर अमुक प्रकारकी अँगुलीवालोंको अमुक विभागमें रखा जा सकता है। कोई व्यक्ति अपना नाम रामजी दे और वह सरकारी बहीमें न हो तो भी यदि उसकी अंगुलियोंकी निशानी हो तो अँगुलियोंके कोष्ठकके आधारपर उसका पता लगाया जा सकता है। इस तरहसे भारत तथा अन्य देशों में बहुत-से अपराधी पकड़े गये हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अपराधी होनेके नाते दस अँगुलियोंकी निशानी ली जाती है।

भारतीयोंको तो अपनी पहचान करवाना है। यदि वे स्वयं अपनी शिनाख्त न देंगे तो वे इस मुल्कमें रह नहीं सकते। इसलिए उनका सच्चा स्वार्थ इसीमें है कि वे अपना सही नाम व पता दें। यदि उनका नाम पुस्तिकामें नहीं होगा तो वे इस देशमें रह नहीं सकते। इसलिए उनसे दस अँगुलियाँ लगवाना बेकार है। यह दलील इतनी मजबूत है कि इससे आखिर सरकारके समक्ष सिद्ध किया जा सकता है कि दस अँगुलियाँ लगवाना बेकार और निकम्मा खर्च है। यह विज्ञान भी कहता है। इसलिए कानूनके समाप्त हो जानेके बाद भी सरकारसे दस अँगुलियोंके सम्बन्धमें तय किया जा सकता है और उसमें भारतीय समाजकी नादानी नहीं मानी जायेगी। दो अँगूठोंके बारेमें यह दलील नहीं की जा सकती। हर लड़ाई महत्त्वपूर्ण बातपर होनी चाहिए; नहीं तो लोकमत हमारे विरुद्ध हो जायेगा।

एक जापानी सज्जन

श्री नाकामूरा नामक एक जापानी आये हुए हैं। वे विज्ञानके विद्यार्थी हैं। उनके पास लॉर्ड एलगिनका पत्र था। फिर भी अनुमतिपत्र अधिकारीने उन्हें तकलीफ दी थी। वे सारी दुनियाकी खानोंकी जाँच करते हैं। उनसे श्री पोलककी मुलाकात हुई। उसका विवरण अंग्रेजीमें दिया गया है।[२] उन्होंने कहा है कि वे अपनी सरकारको खूनी कानूनके बारे में सारी बातें बतायेंगे।

संशोधन

एक लेखकने सूचना दी है कि पिछली सार्वजनिक सभामें प्रिटोरियासे श्री इसे अली और बगस अमीजी आये थे। उनके नाम नहीं दिये गये थे। वे अब देता हूँ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७
  1. प्रामिसरी नोट या कर्ज पटानेके वायदेका रुक्का।
  2. यहाँ नहीं दिया गया।