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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४९२

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३४८. जोहानिसबर्गमें मुकदमा[]

[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर २८, १९०७]

…गत शनिवारको ठीक १० बजे सवेरे जोहानिसबर्गके सभी व्यक्ति बी. फौजदारी अदालत, श्री एच॰ एच॰ जोर्डनके इजलासमें हाजिर हुए। अधीक्षक वरनॉनने उनसे पूछा कि क्या उनके पास १९०७ के कानून २ के अन्तर्गत बाकायदा जारी किये गये पंजीयन प्रमाणपत्र हैं। उनसे नकारात्मक उत्तर मिलनेपर, वे सब तुरन्त गिरफ्तार कर लिये गये और उनपर १९०७ के अधिनियम २, खण्ड ८, उपखण्ड २ के अन्तर्गत अभियोग लगाया गया कि वे अधिनियम के अन्तर्गत जारी किये गये पंजीयन प्रमाणपत्रके बिना ट्रान्सवालमें हैं। अदालत खचाखच भरी थी, और एक समय तो ऐसा जान पड़ता था कि जंगला टूट जायेगा।

उपस्थित व्यक्तियोंमें श्री जॉर्ज गॉडफ्रे, डॉ॰ एम॰ ए॰ पेरेरा, 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादक और अभियुक्तोंके दूसरे अनेक मित्र तथा हितचिन्तक थे।

ताजकी ओरसे श्री पी॰ जे॰ शूरमैनने मुकदमा पेश किया।

अभियुक्तोंमें सबसे पहले इनर टेम्पलके बैरिस्टर और ट्रान्सवाल भारतीय संघके अवैतनिक मन्त्री न्यायवादी श्री मो॰ क॰ गांधीका मामला पेश हुआ।

टी॰ टी॰ पी॰ विभाग के अधीक्षक श्री वरनॉनने गिरफ्तारीके बारेमें बयान दिया। उन्होंने कहा कि अभियुक्त १६ वर्षसे अधिक आयुका एशियाई है और ट्रान्सवालमें रहता है। वे उस दिन प्रातःकाल १० बजे श्री गांधी के यहाँ गये और उनसे अपना पंजीयन प्रमाणपत्र दिखाने को कहा। किन्तु वे दिखा नहीं सके और कहा कि उनके पास प्रमाणपत्र नहीं हैं।

श्री गांधीने कोई प्रश्न नहीं पूछा और वक्तव्य देनेकी तैयारीसे कठघरेमें गये। उन्होंने कहा कि में जो कुछ कहने जा रहा हूँ, वह बयान नहीं है; किन्तु इस अदालतका एक कर्मचारी होने के नाते मैं आशा करता हूँ कि अदालत बरायमेहर मुझे सफाईके रूपमें कुछ शब्द कहनेकी अनुमति प्रदान करेगी। में यह बताना चाहता हूँ कि मैंने इस आदेशको क्यों नहीं माना।

श्री जोर्डन: मैं नहीं समझता कि मामलेसे इसका कोई सम्बन्ध है। कानून है और आपने उसे तोड़ा है। मैं यहाँ किसी तरहका राजनीतिक भाषण नहीं चाहता।

श्री गांधी: मैं कोई राजनीतिक भाषण नहीं देना चाहता।

श्री जोर्डन: सवाल यह है कि आपने पंजीयन कराया है या नहीं। यदि आपने पंजीयन नहीं कराया है तो मामला खत्म है। मैं जो फैसला सुनाने जा रहा हूँ, यदि आपको उसके

  1. अदालत में गांधीजीपर चलाया गया यह पहला मुकदमा था। यह विवरण "श्री गांधीको ट्रान्सवालसे निकल जानेका आदेश" शीर्षकसे इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुआ था।