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जोहानिसबर्ग में मुकदमा

बारेमें, दया-याचनाके रूपमें कुछ कहना हो तो बात अलग है। कानून मौजूद है जो ट्रान्सवाल विधान मण्डल द्वारा पास किया जा चुका है और साम्राज्य-सरकार द्वारा स्वीकृत हो चुका है। मुझे जो कुछ करना चाहिए और में जो कुछ कर सकता हूँ, वह केवल इतना है कि कानून जैसा भी हो उसे अमलमें लाऊँ।

श्री गांधीने कहा कि मैं सफाईके लिहाजसे कोई बयान नहीं देना चाहता। मैं जानता हूँ कि कानूनके मुताबिक में कोई बयान नहीं दे सकता।

श्री जोर्डन: मुझे सिर्फ कानूनी बयानसे सरोकार है। मेरे खयालसे आप यही कहना चाहते हैं कि आपको यह कानून नापसंद है और आप अपनी आत्माके आधारपर इसका विरोध करते हैं।

श्री गांधी: यह बिलकुल ठीक है।

श्री जोर्डन: यदि आप यह कहें कि आपको आत्मिक आपत्ति है तो में बयान ले लूँगा । श्री गांधीने बताया कि वे ट्रान्सवालमें कब आये थे और यह भी कहा वे ब्रिटिश भारतीय संघके मन्त्री हैं। इसपर श्री जोर्डनने कहा: मेरी समझमें नहीं आता कि इससे मुकदमेमें क्या फर्क पड़ता है।

श्री गांधी: यह तो मैं पहले कह चुका हूँ। मैंने अदालतसे केवल पाँच मिनटकी अनुकम्पा चाही थी।

श्री जोर्डन: मैं नहीं समझता कि यह कोई ऐसा मामला है जिसमें अदालत रियायत दे। आपने कानून तोड़ा है।

श्री गांधी: बहुत अच्छा, श्रीमान; तब मुझे और कुछ नहीं कहना है।

श्री शूरमैनने सूचित किया: अभियुक्तको और दूसरे सब एशियाइयोंको पंजीयन करानेके लिए पर्याप्त समय दिया गया था। जान पड़ता है, अभियुक्त पंजीयन नहीं कराना चाहता और इसलिए मैं नहीं समझता कि उसे देशसे चले जानेके लिए कोई लम्बा वक्त दिया जाये। यह निवेदन करना मेरा कर्तव्य है कि अभियुक्तको ४८ घंटेके भीतर देश छोड़नेका हुक्म दिया जाये।

…श्री जोर्डनने अपना निर्णय देते हुए कहा: सरकार अत्यन्त नरम रही है और फिर भी जान पड़ता है कि इन लोगों में से किसीने पंजीयन नहीं कराया। उपनिवेशके कानूनको अवज्ञाके परिणामस्वरूप सरकारने यह कार्रवाई की है। मुझे एशियाई पंजीयन अध्यादेश, शान्ति-रक्षा अधिनियम और प्रवास-अधिनियम के अन्तर्गत अभियुक्तोंको एक निश्चित अवधिके अन्दर उपनिवेशसे चले जानेकी आज्ञा देनेका अधिकार है। फिर भी इस मामलेमें कठोरता बरतनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है, और मैं श्री शूरमैनके ४८ घंटे सम्बन्धी सुझावको स्वीकार करना नहीं चाहता। मुझे न्यायसंगत आदेश देने चाहिए। श्री गांधी और अन्य लोगोंको अपना सामान और चीजें बटोरने का समय देना चाहिए। साथ ही मुझे श्री गांधीको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि कानूनमें कुछ सजाओंकी व्यवस्था है। यदि आज्ञाका