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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

पालन न किया जाये तो कमसे-कम सजा एक महीनेकी सादा या सख्त कैदकी है; और यदि अपराधी उस सजाके खत्म होनेके सात दिन बाद फिर उपनिवेशमें मिलता है तो कमसे-कम सजा छः महीनेकी है। मुझे यह आशा जरूर है कि इन मामलोंमें थोड़ी समझदारी दिखाई जायेगी उपनिवेशके एशियाई यह समझ लें कि वे सरकारके साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। यदि वे ऐसा करें तो उन्हें पता चल जायेगा कि यदि कोई व्यक्ति राज्यकी इच्छाके विरोधमें खड़े होनेकी जुरअत करता है तो व्यक्तिसे अधिक शक्तिशाली होनेके कारण क्षति राज्यकी नहीं, व्यक्तिकी होती है।

…श्री गांधीने न्यायाधीशकी बातके बीचमें कहा कि वे ४८ घंटेकी आज्ञा दें और यदि यह अवधि इससे भी कम की जा सके तो उन्हें अधिक सन्तोष होगा।

श्री जोर्डन: यदि ऐसी बात है तो में आपको कदापि निराश नहीं करूंगा। आप उपनिवेशसे ४८ घंटेके अन्दर चले जायें, यही मेरा आदेश है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८

३४९. श्री पी॰ के॰ नायडू और अन्य लोगोंका मुकदमा[१]

[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर २८, १९०७]

[गांधीजी]: क्या आप ब्रिटिश प्रजा हैं?

गवाह: जी हाँ।

क्या आप लड़ाईसे पहले ट्रान्सवालमें थे?

जी हाँ, १८८८ से हूँ।

क्या आपने डच सरकारको ३ पौंड कर दिया था?

मैंने कुछ नहीं दिया।

आपने कानूनके अन्तर्गत पंजीयन-प्रमाणपत्र नहीं लिया है?

नहीं, किसी भी कानूनके अन्तर्गत नहीं।

क्यों नहीं लिया?

मेरे खयालसे उस कानूनके अन्तर्गत अनुमतिपत्र लेना मेरे लिए उचित नहीं था। वह मेरे लिए अत्यन्त अपमानजनक होता…।

  1. गांधीजीने पहले अपने मुकदमेकी पैरवी की थी (देखिए पिछला शीर्षक), और फिर अन्य अभियुक्तोंके मुकदमोंकी। अन्य अभियुक्तोंमें सबसे पहले श्री पी॰ के॰ नायडूसे जिरह की गई थी।