श्री जोर्डन: क्यों?
यदि अधिनियम मेरे सम्मुख होता तो मैं उसमें कुछ प्रविधियाँ बताता जिनको स्वीकार करना, मेरे खयालसे, ब्रिटिश प्रजाके लिए उचित नहीं। कानूनमें स्पष्ट कहा गया है कि हम अपनी दसों अँगुलियोंके निशान दें, और फिर अपनी आठ अँगुलियोंके निशान अलग-अलग दें, तथा उनके अतिरिक्त अँगूठोंके निशान भी। फिर हमें अपने माँ-बाप और बच्चोंके नाम भी बताने पड़ते हैं…।
श्री शूरमैन द्वारा जिरह: आप यहाँ कबसे हैं?
१८८८ से। १८९९ के १८ अक्तूबरको मैं चला गया था और १९०२ में वापस आ गया। मैं नेटाल गया और जुलाई १९०७ में लौटा।
आपने इस अधिनियम के सम्बन्धमें सभाएँ कीं?
मेरे लौटने के बाद सभाएँ की गई थीं।
क्या आपने भारतीयोंसे पंजीयन न करानेका आग्रह किया?
मैंने शपथ ली कि पंजीयन न कराऊँगा।
शपथ कहाँ ली?
यदि मैं भूलता नहीं तो शपथ बर्गर्सडॉर्पके इन्डिपेंडेंट स्कूलकी सभामें ली थी।
आप पंजीयन कराना नहीं चाहते?
नहीं।
श्री जोर्डन: देशमें आनेके लिए आपके पास अनुमतिपत्र था?
नहीं, मेरे पास एशियाई-पंजीयकका अधिकारपत्र था।
श्री शूरमैन वह अधिकारपत्र देखने को माँगा, जिसे श्री जोर्डनने मंजूर कर लिया। श्री नवाबखाँ और समन्दरखाँके मुकदमे ३ जनवरीके लिए स्थगित कर दिये गये, क्योंकि कोई दुभाषिया नहीं था।
इसके बाद श्री सी॰ एम॰ पिल्लेका मुकदमा लिया गया। उन्होंने कहा, मैं ट्रान्सवालमें १८८३ में आया था, और लड़ाईसे पहले एशियाई पासों और परवानोंका निरीक्षक था। लड़ाईके दिनोंमें मैं रसद विभागमें एक अधिकारी और न्यायालयका संदेशवाहक भी था।
श्री गांधी: आप पंजीयन क्यों नहीं कराते?
मेरा खयाल है कि कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अधिनियम की धाराओंका पालन नहीं करेगा, क्योंकि उससे हमारी स्वतन्त्रता पूर्णतः एशियाई पंजीयकके, जो मेरी विनम्र सम्मतिमें इस पद के लिए उपयुक्त और उचित व्यक्ति नहीं है, हाथमें चली जाती है।…
न्यायाधीशने यहाँ टोका और कहा, मैं ऐसी बेतुकी बातें नहीं सुनना चाहता। …मेरा खयाल है कि कोई व्यक्ति यहाँ आये और इस प्रकार एक सरकारी अधिकारीको गालियाँ दे, यह नितान्त धृष्टता है। मैं इस प्रकार अपना समय नष्ट करना और न्यायालयकी प्रतिष्ठा घटाना नहीं चाहता। यह अत्यन्त अनुचित है।
श्री गांधीने कहा, मैं अभियुक्तके कथनके अनौचित्यके सम्बन्ध में न्यायाधीशसे सहमत हूँ और मेरा इरादा पंजीयक पद के लिए पंजीयककी अयोग्यताके सम्बन्ध में गवाही कराना नहीं है।