न्यायाधीशने क्विनको भी १४ दिनका नोटिस, जैसा उन्होंने भारतीय दूकानदारको दिया था, देनेपर जोर दिया।
गवाहोंके कठघर में जानेवाले अन्तिम व्यक्ति थे जॉन फोर्तोएन। उन्होंने कहा, मैं ट्रान्सवालमें लड़ाईसे १३ वर्ष पहलेसे रहता हूँ; मैं अपने चाचाके साथ छुटपनमें ही आया था। में नहीं जानता कि मेरे चाचा कहाँ हैं और न मुझे यही ज्ञात है कि मेरे माता-पिता जीवित हैं या नहीं। मैं छात्र हूँ और केप कॉलोनी के (ह्यूमैन्सडॉर्प के पास स्थित) हैंकी इन्स्टिट्यूशनसे अभी आया हूँ। वहाँ मैं १९०४ से हूँ। में दक्षिण आफ्रिकाको अपना घर मानता हूँ और चीनमें किसीको नहीं जानता। मैं पंजीयन प्रमाणपत्र लेना नहीं चाहता, क्योंकि वह मेरे देश और सम्मानके लिए अपमानजनक है। मेरी आयु २१ वर्ष है।
श्री गांधीने कहा, यह अदालतके सम्मुख कुछ कहनेका मेरा अन्तिम अवसर होगा। मैं कुछ सामान्य बातें कहना चाहता हूँ। मैंने अपने मुवक्किलोंको जान-बूझकर यह सलाह दी है कि वे अपने-आपको निर्दोष बतायें, ताकि अदालत स्वयं उन्हींकी जुबानी उनको जो कुछ कहना है, सुन सके। उन सभीने अँगुलियोंके निशानोंकी प्रणालीके सम्बन्ध में थोड़ा-बहुत कहा है। न्यायाधीश इस विचारको मनसे निकाल दें कि ये लोग क्या कर रहे हैं, यह नहीं जानते। मैं जानता हूँ कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ उससे न्यायाधीशके निर्णयपर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। किन्तु मैंने यह स्पष्टीकरण देना अपने प्रति और अपने मुवक्किलोंके प्रति अपना कर्तव्य समझा है। इस संसारमें कुछ ऐसी बातें हैं जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती, और इस कानूनमें भी कुछ ऐसी बातें हैं जिनको लोग अनुभव करते हैं, किन्तु व्यक्त नहीं कर सकते। मैं अँगुलियोंके निशान देनेकी प्रणालीके सम्बन्धमें अभियुक्तोंकी भावनाओंको समझना न्यायाधीश महोदयपर छोड़ता हूँ…
श्री जोर्डनने अपने उत्तरमें कहा, अभी जो मामला हमारे सामने प्रस्तुत है उसीके सम्बन्ध में भारतीयोंका एक शिष्टमण्डल साम्राज्य सरकारसे निवेदन करने इंग्लैंड गया था, किन्तु वह शिष्टमण्डल व्यर्थ रहा। जिस अधिनियमपर इतनी आपत्ति की गई थी उसको ट्रान्सवालकी वर्तमान विधानसभाने पास कर दिया है और उसपर सम्राट्की स्वीकृति मिल गई है। अन्य सारी भावनाओंकी बात छोड़कर, मुझे अपनी शक्ति-भर कानूनपर अमल करनेके सिवा और कुछ नहीं करना है, और ऐसा करनेके लिए मैंने शपथ ली है। इन लोगों (अभियुक्तों) ने जानबूझकर सरकारको चुनौती दी है और एक बहुत ही गम्भीर रुख अपनाया है। मुझे इस देशमें किसीको भी ऐसा रुख अपनाते देखकर दुःख होता है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह कार्रवाई करके भूल की गई है और यह इंग्लैंड में शिक्षा-सम्बन्धी विधेयकके अनाक्रामक प्रतिरोधियोंका अनुकरण मात्र है। मुझे यह रुख किसी भी रूपमें कभी पसन्द नहीं आया। प्रत्येक देशके कानूनका उसके निवासियों द्वारा पालन होना चाहिए और यदि वे ऐसा न कर सकें तो केवल एक मार्ग रह जाता है—ऐसे लोग कहीं अन्यत्र चले जायें। किन्तु मेरी समझमें एक बात किसी भी तरह नहीं आ सकती कि जब एक व्यक्ति एक पंजीयन प्रमाणपत्रपर अँगूठेका निशान लगा चुका, जैसा पिछले सालोंमें किया गया था, तब प्रत्येक हाथकी चार अँगुलियोंके निशान लगानेपर उसके धर्मपर आघात कैसे होता है।