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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


आगे उन्होंने शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत जारी प्रथाका उल्लेख किया और जोर देकर कहा, यदि उन्होंने उस समय अँगूठेकी निशानीके विरुद्ध आपत्ति की होती तो उनकी स्थिति आज ज्यादा मजबूत होती। उनकी शिनाख्तका एकमात्र तरीका पंजीयन प्रमाणपत्र है, जिसपर अँगूठे की निशानी आवश्यक होती है। ऐसा पिछली सरकार द्वारा जारी किये गये पीले पासोंके दिनोंमें भी होता था; किन्तु जब एशियाइयोंको नये रूपमें पंजीयन कराना पड़ा तब वे अकस्मात् कानूनको सीधी चुनौती दे बैठे। श्री गांधीको जानना चाहिए कि ट्रान्सवालमें शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत मेरा अनुभव अन्य सब न्यायाधीशोंसे अधिक है। और श्री गांधीको यह भी मालूम होना चाहिए कि तब पीले प्रमाणपत्रोंकी अनुचित बिक्री बड़े जोरोंसे चल पड़ी थी, जिससे प्रमाणपत्रके असली मालिकका पता लगाना कठिन हो गया था और बहुत परेशानी और खर्च उठाना पड़ा था। उसके बाद न्यायाधीशने न्यायालय में पेश युवकके मामलेपर वापस आते हुए यह आज्ञा दी कि वह उपनिवेश से सात दिनके भीतर चला जाये।

श्री गांधीने संक्षेपमें उत्तर देते हुए कहा कि पुराने अनुमतिपत्रपर दी गई अँगूठेकी निशानी और नये कानूनके अन्तर्गत दी जानेवाली अँगुलियोंकी निशानियोंमें सदा अन्तर किया गया है। एक अनिवार्य है और दूसरा स्वेच्छाधीन था। न्यायाधीश भली भांति जानते हैं कि जिन मामलोंमें अँगूठेकी साफ निशानी ली जाती थी, उनमें आदमीको पहचाना जा सकता था और अनुमतिपत्रोंकी नाजायज बिक्री असम्भव हो गई थी।

उन्होंने न्यायाधीश, सरकारी वकील और पुलिसको मुकदमेमें दिखाई गई शिष्टता के लिए धन्यवाद दिया।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८

३५०. भाषण: सरकारी चौकमें[१]

[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर २८, १९०७]

…मुझपर या दूसरोंपर चाहे जो भी बीते, हम लड़ाई बराबर जारी रखेंगे। मैं अपने विचार हरगिज नहीं बदलूंगा और एशियाई समुदायोंसे अनुरोध करता हूँ कि वे पंजीयन अधिनियम के विरोध में अपना संघर्ष जारी रखें, चाहे इसके लिए उन्हें देशसे निर्वासित ही क्यों न होना पड़े। हो सकता है, मैं बराबर गलतीपर ही होऊँ। यह भी सम्भव है कि आगे चलकर आप सब मुझे कोसें। परन्तु अभी तो मैं अपने उन्हीं विचारोंपर दृढ़ हूँ जो मैंने बताये हैं। यदि ईश्वरकी तरफसे मुझे ऐसा संकेत मिला कि मैंने भूल की है तो मैं अपनी

  1. मुकदमेकी सुनवाई समाप्त होनेपर गांधीजीने सरकारी चौकमें भारतीयों, चीनियों और यूरोपीयोंकी एक विराट् सभामें भाषण दिया था। पहले हिन्दुस्तानी में बोलते हुए उन्होंने मुकदमे की कार्यवाही के बारेमें बताया। उनके भाषण के उस अंशकी हिन्दी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। यह रिपोर्ट भाषणके उस अंशकी है जो उन्होंने यूरोपीय श्रोताओंके लिए अंग्रेजीमें दिया था।