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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

इसलिए दिये गये हैं कि सरकार भारतीयोंको अपनी मर्जी के मुताबिक झुका सके, उन्हें अपने अन्तःकरणके विरुद्ध काम करनेपर मजबूर कर सके; संक्षेपमें इनका उद्देश्य है एक घातक प्रहार करके भारतीयोंको पुंसत्वहीन बना देना जिससे वे उसके हाथोंमें मोम जैसे बनकर रह जायें।

क्या उपनिवेशी जानते हैं कि प्रवासी अधिनियम के अन्तर्गत होनेवाला निर्वासन साधारण निर्वासन की अपेक्षा बहुत बुरा है? यदि मैं हत्या करूँ और मुझे आजन्म निर्वासनकी सजा मिले तो मैं एक ऐसे स्थानको भेजा जाऊँगा जहाँ मुझे रहनेको घर और खानेको दाने मिलेंगे, जैसी सुविधा नेटालसे सेंट हेलेनाको भेजे गये थोड़े-से वतनी विद्रोहियों को भी दी जाती है। किन्तु यदि मैं एशियाई अधिनियमको सिर न झुकाऊँ और फलतः मुझे निर्वासित कर दिया जाये तो उसका अर्थ यह होगा कि मुझे बिना एक पाईके सीमा पार कर दिया जायेगा और अगर मेरे पास व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं हो तो ऊपरसे, जैसे-बने-वैसे, निर्वासन-व्यय चुकानेका प्रबन्ध करनेकी जिम्मेदारी लाद दी जायेगी। और यदि ट्रान्सवालमें मेरा परिवार है तो जहाँतक सरकारकी बात है, उसे भूखों मर जाने दिया जायेगा। और सोचिए कि यह सब उन लोगोंपर बीतेगी जिन्होंने जीविकोपार्जनकी दृष्टिसे ट्रान्सवालको अपना घर और भारतको विदेश मान लिया है। गिरफ्तार किये गये भारतीयों में से कुछ पन्द्रह वर्ष पुराने व्यापारी हैं, उनकी पत्नियाँ दक्षिण आफ्रिकामें जन्मी हैं और ट्रान्सवालमें रह रही हैं। एक चीनी है जो बिलकुल छुटपन में ही दक्षिण आफ्रिका आया और चीनका नाम भर जानता है। वह पाश्चात्य रीति-रिवाजोंके बीच जन्मा और पला है। गिरफ्तार किये गये सभी एशियाई यहाँके कानूनी अधिवासी हैं और उनके पास ऐसे दस्तावेज हैं जिनके आधारपर उन्हें इस देशमें रहनेका हक है। ये लोग चूंकि अपनी आत्माकी उपेक्षा न करके एशियाई अधिनियम का उल्लंघन करते हैं इसलिए इन्हें न केवल जेलकी सजा दी जा सकती है बल्कि उपनिवेश सचिव के हस्ताक्षरसे जारी किये गये वारंटके बलपर उपर्युक्त तरीकेसे देश निकाला भी दिया जा सकता है। मैं नहीं कहता कि जो लोग कानूनको नहीं मानते, चाहे ऐसा वे अपनी आत्माकी पुकारपर ही करते हों, उन्हें बिलकुल सजा ही नहीं मिलनी चाहिए; लेकिन मैं यह जरूर कहूँगा कि जब सजा जुर्म के अनुपात में नहीं हो तो उससे बर्बरताकी तेज बू आती है। और यदि प्रवासी कानूनके अन्तर्गत प्राप्त अधिकारोंका प्रयोग एशियाई अधिनियमके संदर्भ में किया जाता है तो इसका अर्थ होगा ट्रान्सवालके मतदाताओंके नामपर एक बर्बर कार्य करना। क्या इस देश के लोग एक सम्पूर्ण जाति के विनाशपर प्रसन्नता से मुस्करायेंगे? राजभक्त महिलाओंका संघ (गिल्ड ऑफ लॉयल विमेन) पत्नियोंको अपने स्वाभाविक संरक्षकों के बिना रखने के बारे में क्या कहेगा? मैं अपनेको ब्रिटिश साम्राज्यका प्रेमी तथा ट्रान्सवालका एक नागरिक (चाहे मताधिकारहीन ही सही) मानता हूँ, और और देशके सामान्य हितसाधनमें पूरी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हूँ। और मेरा दावा है कि अगर मैं अपने देश-भाइयोंको इस कारण एशियाई अधिनियमके आगे न झुकनेकी सलाह देता हूँ कि वह उसके पुंसत्वके लिए अकीर्तिकर और उनके धर्मके लिए अपमानजनक है तो यह बात सर्वथा सम्मानपूर्ण और मेरे उपर्युक्त कथनसे मेल खाती हुई होगी। मैं यह भी दावा करता हूँ कि इस बुराईका विरोध करनेके लिए अपनाया गया अनाक्रामक प्रतिरोधका मार्ग सबसे स्वच्छ और निरापद है, क्योंकि यदि प्रतिरोधियोंका पक्ष सच्चा नहीं होगा तो इसका फल उन्हें और केवल उन्हें ही भोगना पड़ेगा। मैं यह भली भाँति जानता हूँ कि एक ऐसे देश में, जहाँ असमान रूपसे विकसित