अनेक जातियाँ रहती हैं, किसी ईमानदार नागरिक द्वारा वहाँके कानूनका विरोध करनेकी सलाह दिये जाने में सुशासनको क्या खतरे हैं। किन्तु, मैं यह नहीं मानता कि विधायकों से गलती हो ही नहीं सकती। मेरा विश्वास है कि प्रतिनिधि विहीन वर्गोंके साथ व्यवहार करनेमें वे सदा उदार या कमसे कम न्यायपूर्ण भावना से भी परिचालित नहीं होते। मैं यह कहने का साहस करता हूँ कि यदि अनाक्रामक प्रतिरोधकी नीति आम तौरपर स्वीकार कर ली जाये तो हमारे विधायकोंकी मूर्खतापूर्ण भूलके कारण वतनी लोगोंके धैर्य खो देनेपर (जो असम्भव नहीं है) भयानक मृत्यु-संघर्ष और रक्तपातका जो खतरा रहता है वह सदा के लिए टल जा सकता है।
यह कहा गया है कि जिन लोगोंको कानून पसन्द न हो, वे देश छोड़कर बाहर जा सकते हैं। गद्दीदार कुर्सी पर बैठकर यह सब कह देना बहुत सहज है, लेकिन लोगोंके लिए न तो यह सम्भव है और न शोभनीय ही कि अपने विरुद्ध बने कुछ कानूनों को न माननेके कारण वे अपने घर-बारको छोड़ दें। बोअर-कालमें जब डचेतर गोरोंने कानूनके सख्त होनेकी शिकायत की थी तब उनसे भी यही कहा गया था कि यदि कानून पसन्द नहीं है तो वे देश छोड़कर जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने न जाना ही बेहतर समझा। क्या भारतीय जो अपने आत्म-सम्मान के लिए लड़ रहे हैं, कैद या उससे भी कड़े दण्डसे डरकर देशसे भाग जायेंगे।
नहीं श्रीमन्, यदि मेरा बस चले तो पशु-बलके सिवा और कोई शक्ति भारतीयोंको इस देश से हटा नहीं सकती। नागरिकका यह कोई कर्तव्य नहीं है कि अपने ऊपर लादे गये कानूनोंका वह आँख मूंदकर पालन करे। और यदि मेरे देशवासियोंका ईश्वर में और आत्माके अस्तित्वमें विश्वास है तो उनके मस्तिष्क, इच्छाशक्ति तथा आत्माएँ आकाश के परिंदोंकी भाँति उन्मुक्त और तेजसे-तेज तौरकी पहुँच से परे रहेंगी, भले ही वे अपने शरीरपर राज्यकी सत्ता स्वीकार कर जेल जायें, देश निकाला भोगें। जनरल स्मट्स, जिनकी एक नेकदिल उपनिवेश मन्त्री द्वारा मंजूर किये गये दमनकारी कानूनोंमें बड़ी आस्था है, यह भूल जाते हैं कि जो एशियाई अन्तःकरणकी पुकारपर आज लड़ रहे हैं, वे उनके किसी उपायसे झुकेंगे नहीं। यदि नेताओंके हटते ही मेरे देशवासी झुक गये, तब तो हम ऐसे ही कानूनके योग्य होंगे। लेकिन तब भी अनाक्रामक प्रतिरोधको अर्थात् ईसा मसीहकी "बुराईका विरोध मत करो" वाली शिक्षाकी शुद्धता प्रमाणित हो ही जायेगी।
आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी
स्टार, ३०-१२-१९०७